अक्सर समाज में महिला पुरुष को लेकर सभी विसंगतियों का मूल कारण अब इस सोच को माना जाता है कि समाज ने हर पदनाम को भी महिला तथा आदमी के नजरिए से देखना आरम्भ कर दिया. एक्टर आयुष्मान खुराना मानते हैं कि इन स्थानों का लिंग के हिसाब से चयन न करके, यदि इन्हें इनके मूल स्वरूप में ही रहने दिया जाए तो इसका प्रभाव दूरगामी हो सकता है. वही ये देखा गया है कि आदमी को शिक्षक तथा महिला को शिक्षिका लिखने वाले सभी लोग MLA, यदि स्त्री हुई तो उसे विधायिका या फिर डायरेक्टर यदि स्त्री हुई तो निर्देशिका लिख जाते हैं. जबकि, विधायिका अथवा निर्देशिका शब्द पूरी तरह भिन्न मायनों में प्रयुक्त होते हैं. अवार्डों में लिंग निर्धारण खत्म करने की एक बड़ी पहल इस वर्ष बर्लिन फिल्म समारोह से हुई है. वहां अब सर्वश्रेष्ठ एक्टर अथवा सर्वश्रेष्ठ एक्ट्रेस की जगह अवार्ड सर्वश्रेष्ठ अभिनय को प्राप्त होगा, तथा इसे हासिल करने वाला महिला अथवा आदमी में से कोई भी हो सकता है. ऐसे दो अवार्ड बर्लिन फिल्म फेस्टिवल आयोजन कमिटी ने निर्धारित किए, एक सर्वश्रेष्ठ मुख्य अभिनय तथा दूसरा सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनय. वही आयुष्मान मानते हैं कि ये निर्णय दूरगामी होगा, तथा इसका अनुसरण दूसरे देशों को भी करना चाहिए. आयुष्मान कहते हैं, "बर्लिन फिल्म समारोह के इस निर्णय का मैं तहे दिल से स्वागत करता हूं. मुझे आशा है कि देश के साथ-साथ पुरे विश्व के सभी फिल्म समारोह भी ऐसा ही करेंगे. आखिरकार हम सभी आर्टिस्ट ही तो हैं, तथा इन्हें महिला, आदमी में बांटना हमारे समाज में लंबे वक़्त से उपस्थित अंतर को ही उजागर करता है. इसी के साथ आयुष्मान ने हो रहे भेदभाव पर अपनी राय रखी है. NCB द्वारा पूछताछ में रोने लगी रिया, कहा- 'ड्रग्स नहीं लेती लेकिन...' शाहिद से शादी के लिए मीरा ने कर दिया था साफ़ इंकार, रखी थी यह शर्ते रिया संग मीडियाकर्मियों की धक्का-मुक्की को इस एक्टर ने बताया शर्मनाक