कटाक्ष: बाबा नाम से परहेज...

हमारे देश में बाबाओं की बहुतायत है। कई लोगों को हम प्यार से बाबा बुलाते हैं। लेकिन आजकल बाबा कहते ही लोग बिफर पड़ते हैं। अब कल ही की बात ले लो, हमारे पड़ोस में बुजुर्ग हैं और सब उन्हें प्यार से बाबा बुलाते हैं। कल उनसे यूं ही मुलाकात हो गई, तो हमने कहा, बाबा प्रणाम, कैसे हैं? बस हम कुछ और बोलते कि वे बिफर पड़े, बोले बाबा मत कहो।  हमें कुछ समझ नहीं आया, कुछ पूछ पाते, इससे पहले ही वे आगे बढ़ गए। अब हम असमंजस में कि जिन्हें बचपन से बाबा बुलाते आ रहे हैं और बाबा सुनकर वे अपनी जेब से एक टॉफी निकालकर दे देते थे आज टॉफी तो दूर उलटी डांट पड़ गई। खैर हम भी घर वापस आ गए। 

घर पर हमारे एक मित्र बैठे थे, प्यार से उनके नाम के साथ बाबा लगाते थे,  जैसे संजू बाबा, राहुल बाबा आदि। लेकिन जैसे ही हमने उन्हें बाबा कहकर बुलाया, बोले  सौ जूते मार लो, लेकिन बाबा मत कहो। हमने पूछा भई बात क्या है? तो बोले, अरे बड़ा बुरा हाल है। कोई बाबा कहता सुन ले, तो सीधे जेल जाना पड़े। उन्होंने कहा कि उनका बेटा भी उन्हें बाबा कहता था, लेकिन अब वह उसे पिताजी कहने को कह रहे हैं। हमने कहा ऐसा क्यों? तो बोले बाबा नाम बड़ा खुराफाती है। बाबा लगाया नहीं कि दिमाग फिर जाता है। बाबा नाम सुनते ही लोग दूर भागने लगते हैं कि  पता नहीं कौन होगा? अरे बाबाओं की करतूते ही ऐसी हैं, कि अब तो इस  नाम से ही डर लगने  लगा है। 

मित्र तो चला गया, लेकिन उसकी बातों ने हमें सोचने को मजबूर कर दिया कि सच में बाबा में जो प्यार था, वह इन बलात्कारी बाबाओं ने खत्म ​कर दिया है। हम जिसे बाबा कहते थे, वह पिता सदृश्य प्यार देता था, लेकिन आज यह बाबा भरोसे का कत्ल कर रहे हैं। जो इन्हें  मान रहे हैं, उसी की अस्मिता के लिए खतरा बन रहे हैं। इन बलात्कारी बाबाओ पर सफलता कुछ इस कदर हावी होती है कि उसके वशीभूत होकर ये अनैतिक कार्य करने से भी नहीं डरते हैं।  यहां एक सवाल यह भी है कि जब देश में लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, तो सरकार बाबाओं की ऐसी बाबागिरी को बैन क्यों नहीं कर देती? क्या उसका वोट बैंक किसी की अस्मिता के खिलावाड़ पर भारी है...? 

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