बीहड़ की रानी कहे या फिर बेंडिट क्वीन यह नाम जब भी याद आता है तो एक तरफ चम्बल के बीहड़ का दृश्य सामने आ जाता है जिसमे दूर दूर तक इंसान नजर नहीं आता था और उन बीहड़ो में होता था डकैतों का डेरा, तो दूसरी और वो चेहरा जो हमेशा जुल्म के खिलाफ लड़ता रहा. और उन बीहड़ो में किसी जमाने में डकैत के रूप में पहचानी जाने वाली वो नारी जिसने संसद तक का सफर तय किया. हम बात कर रहे है फूलन देवी की जो किसी जमाने में चम्बल के बीहड़ों में डकैत के रूप में जानी जाती थी. किन्तु वह अपने ऊपर हुए अत्याचार के खिलाफ हमेशा लड़ती रही और अपनी इस लड़ाई से ना सिर्फ वो गरीबों की मसीहा बनी ,बल्कि लोकतंत्र के मंदिर संसद भवन तक का सफर तय किया. किन्तु फूलन देवी का यह सफर आसान नहीं रहा. उन्हें ना सिर्फ खुद के लिए बल्कि उन लोगो के लिए एक डाकू का रूप धारण करना पड़ा जो अपने ऊपर हुए जुर्म की कहानी किसी से बयां नहीं कर सकते थे. फूलन देवी का जन्‍म साल 1963 में आज ही के दिन उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव गोरहा का पूर्वा में मल्लाह के घर 10 अगस्‍त को हुआ था. फूलन देवी को बचपन से ही समाज की मान्यताओं का शिकार होना पड़ा. फूलन देवी की बचपन में ही शादी कर दी गयी थी, जब फूलन देवी की शादी हुई उस समय उनकी उम्र मात्र 11 वर्ष थी. किन्तु उस छोटी सी उम्र में फूलन उस बंधन को नहीं निभा सकी. और चम्बल की इस रानी को जहां उसके पति ने छोड़ दिया, वही उसके पिता और परिवार ने भी उनका साथ नहीं दिया. जिससे फूलन देवी की जिंदगी अभाव ग्रस्त हो गयी. 18 साल की उम्र में उनके साथ गांव के ही ठाकुर समाज के कई लोगों ने गैंगरेप किया. इस असहनीय पीड़ा के बाद भी समाज उसे ना न्याय दे सका और ना एक इज्जत की जिंदगी. जिससे जुल्म की शिकार फूलन ने बीहड़ का रास्ता अपनाया जो उन दिनों डाकुओ का केंद्र हुआ करता था. और वह भी एक डाकू बन गयी. फूलन देवी से जुड़े हुए बीहड़ के अनेक किस्से सामने आते है. जिसमे कहा जाता है कि डकैत गिरोह में उसकी सर्वाधिक नजदीकी विक्रम मल्‍लाह से रही, और फूलन उससे प्रेम करती थी. किन्तु बाद में विक्रम मल्लाह के मारे जाने के बाद फूलन अकेली हो गयी थी. यही नहीं बीहड़ में डकैतों ने भी उसे अपनी हवस का शिकार बनाया. किन्तु फूलन ने अपना ही एक गिरोह बना लिया, और वह चम्बल की रानी के नाम से मशहूर हो गयी. जो जुर्म की देवी के रूप में भी उभर कर सामने आयी, जिसमे फूलन ने अपने ऊपर हुए अत्याचार का बदला लिया. गैंगरेप की वारदात के बाद बदला लेने के लिए उन्‍होंने 22 ठाकुरों की हत्‍या कर दी, जो बहमाई हत्‍याकांड के नाम से जाना जाता है. किन्तु उन्होंने इस हत्याकांड में अपना हाथ होने से मना कर दिया. फूलन देवी ने फांसी न दिए जाने की शर्त पर साल 1983 में सरेंडर किया था. सरेंडर करते वक्‍त फूलन पर 48 मामले दर्ज थे, जिनमें से 30 डकैती और बाकी अपहरण और लूट के थे. 11 साल बिना सुनवाई के जेल में रहने के बाद यूपी की मुलायम सरकार ने सारे आरोप वापस ले लिए. फूलन देवी लोगो के दिल में चम्बल की रानी के रूप में एक ऐसी नारी थी, जो जुर्म के खिलाफ लड़ती रही. लोगो की मसीहा बन चुकी फूलन साल 1996 में यूपी के मिर्जापुर से समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं. किसी दिन बीहड़ में रहने वाली खौफ की यह देवी लोगो की नेता बन गयी थी. जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने अपनी पारिवारिक जिंदगी की शुरुआत करना चाहा, जिसमे उम्मेद सिंह नाम के शख्स से उन्होंने शादी भी की. साल 1994 में शेखर कपूर ने उनके जीवन पर आधारित बैंडिट क्‍वीन फिल्‍म बनाई. जो काफी विवादों और चर्चा में रही. किन्तु बीहड़ की दुश्मनी और उनके उस जीवन ने सांसद बनने के बाद भी उनका पीछा नहीं छोड़ा. ऐसे में 25 जुलाई 2001 को संसद के दौरान दोपहर के भोजन के लिए संसद से फूलन 44 अशोका रोड के अपने सरकारी बंगले पर लौटीं. जहा पर तीन नकाबपोश ने फूलन पर ताबड़तोड़ पांच गोलियां दाग दी. फूलन देवी के माथे में गोली लगने से उनकी मौत हो गयी. वही उस हत्या का कोई आरोपी नहीं पकड़ा गया. किन्तु इसके बाद सामने आया शेर सिंह राणा का नाम, जिसने कत्ल के बाद दुनिया के सामने फूलन देवी को मारने की बात स्वीकार कर ली. फूलन देवी की मौत के बाद भी लोगो के जहन में आज भी फूलन देवी जिंदा है. बीहड़ में आज भी उनकी बाते होती है. वही वह ऐसे लोगो के लिए आज भी प्रेरणा के रूप में जिंदा है जो जुर्म और अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद नहीं कर सकते है.