ढाका: बांग्लादेश में हिन्दुओं सहित तमाम अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले किए जाने की बढ़ती घटनाओं के पीछे एक वजह इस देश का धर्म आधारित ढांचा है। 1972 के पहले बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष देश हुआ करता था, किन्तु उसके बाद यहाँ इस्लाम (Islam) को राज्य धर्म घोषित कर दिया गया और अल्पसंख्यकों को दरकिनार कर दिया गया। बताया जा रहा है कि अब बांग्लादेश ने अपने संविधान का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप वापस अपनाने का फैसला लिया है। दरअसल, 1972 में बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान ने जिस संविधान का प्रस्ताव पेश किया था, वह एक धर्मनिरपेक्ष देश का था। मगर 1988 में संविधान में संशोधन करके बांग्लादेश में इस्लाम को राज्य धर्म बना दिया गया। इसके बाद से ही बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामिक गुट हावी हो गए हैं। सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि अब पीएम शेख हसीना की सरकार ने इस्लामी चरमपंथियों से सीधी टक्कर लेते हुए 1972 के मूल संविधान को फिर से लागू करने का फैसला किया है। बांग्लादेश के सूचना मंत्री मुराद हसन ने कहा है कि इस संबंध में देश की संसद में संविधान संशोधन विधेयक पेश किया जाएगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि बगैर किसी विरोध के यह विधेयक पारित हो जाएगा। उन्होंने कहा कि ऐसा होने के बाद इस्लाम बांग्लादेश का राज्यधर्म नहीं रह जाएगा। बता दें कि ऐसा ऐलान 2016 में भी एक बार किया जा चुका है, मगर बदलाव आज तक नहीं किया गया। 1978 से 1990 के बीच सैन्य शासनों के दौरान किए गए दो संशोधनों के माध्यम से संविधान का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप ख़त्म कर दिया गया। इस्लामिक को राज्यधर्म घोषित कर दिया गया और इसकी शुरुआत 80 के दशक में जनरल एचएम इरशाद के कार्यकाल से हुई थी। समुद्र की तलहटी में मिली 900 साल पुरानी 'धर्मयुद्ध' की तलवार दुबई के तुसाद म्यूज़ियम में लगा विराट कोहली का वैक्स स्टैच्यू उत्तर कोरिया के लिए अमेरिकी प्रतिनिधि सुंग किम इस सप्ताह सियोल की करेंगे यात्रा