भोपाल: 24 दिसंबर 1737, भारतीय इतिहास का वह सुनहरा दिन है जब मराठा साम्राज्य के महान योद्धा पेशवा बाजीराव प्रथम ने हैदराबाद के निजाम, मुगलों और नवाबों की संयुक्त सेना को करारी शिकस्त दी थी। यह युद्ध भोपाल की धरती पर लड़ा गया था, जो उस समय भाग्यनगर (वर्तमान हैदराबाद) के निजाम के नियंत्रण में आने की कगार पर था। इस युद्ध ने भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की दिशा बदल दी और मराठाओं को अपराजेय शक्ति के रूप में स्थापित किया। दिल्ली के मुगल साम्राज्य की ताकत 18वीं शताब्दी तक लगातार कमजोर हो रही थी। औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगलों की सत्ता बिखरने लगी थी। इसी दौरान मराठा साम्राज्य ने अपनी ताकत बढ़ाई और दिल्ली पर कब्जे का सपना देखा। मार्च 1737 में मराठाओं ने दिल्ली के आसपास अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी, जिससे मुगलों में भय व्याप्त हो गया। मुगल शासक मोहम्मद शाह ने अपनी खोती हुई ताकत को बचाने के लिए हैदराबाद के निजाम आसफ जाह प्रथम से मदद मांगी। निजाम की नजर भोपाल पर थी, और उसने मुगलों के साथ मिलकर मराठाओं के खिलाफ युद्ध छेड़ने का फैसला किया। इस युद्ध में बंगाल, अवध और जयपुर के नवाबों ने भी निजाम का साथ दिया। पेशवा बाजीराव, जो अपने सैन्य कौशल और रणनीतिक बुद्धिमत्ता के लिए प्रसिद्ध थे, ने इस युद्ध में अपनी सूझबूझ का परिचय दिया। बाजीराव ने निजाम की 70,000 सैनिकों की भारी-भरकम सेना के मुकाबले केवल 25,000 मराठा सैनिकों के साथ युद्ध लड़ा। उनकी योजना थी कि दुश्मन को थकाकर कमजोर किया जाए और फिर निर्णायक हमला बोला जाए। बाजीराव ने सबसे पहले अपने भाई चिमाजी अप्पा को 10,000 सैनिकों के साथ दुश्मन की रसद और जल स्रोतों को काटने के लिए भेजा। चिमाजी ने पानी के स्रोतों में जहर मिलवा दिया, जिससे निजाम की सेना प्यास से बेहाल हो गई। इस चतुराई ने युद्ध की दिशा ही बदल दी। 24 दिसंबर 1737 को भोपाल के पास निर्णायक युद्ध हुआ। पेशवा बाजीराव ने चारों तरफ से निजाम की सेना को घेर लिया। पानी की कमी और रसद आपूर्ति बंद होने के कारण निजाम की सेना कमजोर पड़ गई। मराठाओं ने मौका देखकर घातक हमला किया और निजाम की सेना में हाहाकार मच गया। मराठा सेना ने इतनी जबरदस्त मारकाट मचाई कि निजाम को घुटने टेकने पड़े। निजाम ने न केवल भोपाल पर कब्जे का सपना छोड़ दिया, बल्कि अपनी और मुगलों के कमांडर मुहम्मद खान बहादुर की जान बचाने के लिए 50 लाख रुपए का मुआवजा भी चुकाया। इस हार के बाद निजाम ने कसम खाई कि वह दोबारा मराठाओं से युद्ध नहीं करेगा। 7 जनवरी 1738 को पेशवा बाजीराव और जय सिंह द्वितीय के बीच शांति संधि हुई। इसके बाद मराठाओं ने मालवा प्रांत पर अधिकार स्थापित किया और भोपाल में स्वराज्य की नींव रखी। इस संधि ने मराठाओं को मध्य भारत में मजबूत कर दिया और मुगलों का पतन और तेज हो गया। इस युद्ध ने एक बार फिर साबित कर दिया था कि मराठाओं की ताकत को चुनौती देना आसान नहीं है। पेशवा बाजीराव ने यह दिखाया कि रणनीति और हिम्मत से बड़ी से बड़ी सेना को हराया जा सकता है। यदि इस युद्ध में मराठा हार जाते, तो न केवल भोपाल भाग्यनगर (हैदराबाद) का हिस्सा बन जाता, बल्कि मुगलों का पतन भी टल जाता। उल्लेखनीय है कि, भोपाल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि राजा भोज से जुड़ी है, जिन्होंने यहां दुनिया का सबसे बड़ा तालाब बनवाया था। बाद में यह क्षेत्र रानी कमलापति के नाम से प्रसिद्ध हुआ। दोस्त मोहम्मद खान ने रानी कमलापति के बेटे को मारकर भोपाल पर कब्जा कर लिया था। 1728 में हैदराबाद के निजाम ने भोपाल को अपने अधीन कर लिया, लेकिन मराठाओं की विजय के बाद यहां स्वराज्य की स्थापना हुई। 24 दिसंबर 1737 का यह युद्ध भारतीय इतिहास में मराठाओं के पराक्रम और पेशवा बाजीराव की रणनीतिक कुशलता का प्रतीक है। यह विजय न केवल मराठाओं की ताकत को स्थापित करती है, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति को भी नई दिशा देती है। पेशवा बाजीराव के नेतृत्व में मराठाओं ने यह साबित कर दिया कि दृढ़ निश्चय, साहस और सूझबूझ से कोई भी युद्ध जीता जा सकता है। इस युद्ध की गूंज आज भी भारतीय इतिहास के पन्नों में सुनाई देती है और यह हमें प्रेरणा देती है कि अपने अधिकारों के लिए लड़ना कभी बंद नहीं करना चाहिए। बुंदेलखंड के किसानों को पानी की किल्ल्त से मिलेगी मुक्ति, केन-बेतवा लिंक परियोजना का उद्घाटन करेंगे पीएम मोदी गांधी परिवार के गढ़ अमेठी में बंद पड़ा है 120 साल पुराना शिव मंदिर, समुदाय विशेष का कब्जा..! 'आज 12:30 बजे बड़ी घोषणा करूँगा, दिल्ली वाले खुश हो जाएंगे..', अब क्या ऐलान करेंगे केजरीवाल?