नई दिल्लीः आज शहीद-ए-आजम भगत सिंह का शहीदी दिवस है। आज के ही दिन स्वतंत्रता के इस नायक को फांसी दी गई थी। छोटी सी आयु में भारत पर कुर्बान होने वाले भगत सिंह आज भी युवाओं के प्रेरणास्त्रोत हैं। आज के दिन को शहीदी दिवस या बलिदान दिवस के तौर पर याद किया जाता है। स्वतंत्रता के लिए 23 वर्ष की आयु में फांसी पर झूलने वाले भगत सिंह इंकलाब जिंदाबाद तथा साम्राज्यवाद मुर्दाबाद के नारे लगाते थे। 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में क्रांतिकारी राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फांसी की सजा पाने वाले भगत सिंह की मृत्यु से पहले अंतिम इच्छा पूरी नहीं हो पाई थी। बता दे कि भगत सिंह लाहौर सेंट्रल जेल में कोठरी नंबर 14 में बंद थे, जिसका फर्श भी कच्चा था। उस पर घास उगी थी। कोठरी इतनी छोटी थी कि उसमें कठिनाई से भगत सिंह का शरीर आ पाता था। हालांकि, वह जेल की जिंदगी के आदी हो गए थे। दरअसल, भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को समय से 12 घंटे पहले फांसी दी गई थी। उन्हें पहले 24 मार्च को फांसी दी जानी थी। इससे पहले भगत सिंह ने जेल के सफाई कर्मचारी बेबे से अपील की थी कि वह फांसी से एक दिन पहले उनके लिए घर का खाना लाए। किन्तु, बेबे भगत सिंह की यह अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर सका, क्योंकि उन्हें वक़्त से पहले फांसी देने का फैसला हो गया था तथा बेबे को जेल में नहीं घुसने दिया गया। वही भगत सिंह के बारे में बताया जाता है कि वह अपनी एक जेब में डिक्शनरी तथा दूसरी में पुस्तक रखते थे। उनके दिमाग में किताबी कीड़ा था। किसी मित्र के घर गए या फिर कहीं बैठे हैं तो वह तत्काल अपनी जेब से पुस्तक निकालकर पढ़ने लगते थे। इस के चलते यदि अंग्रेजी का कोई शब्द समझ नहीं आया तो डिक्शनरी निकालकर उसका मतलब जानते थे। भारत ने 400 बिलियन अमरीकी डालर का निर्यात किया: पीएम मोदी भोजपुर नाव हादसे में मिले 3 लोगों के शव, हाथ में टॉर्च थामे मिली महिला की लाश जेल में बंद कैदियों को लेकर मोदी सरकार ने लिया ये बड़ा फैसला