भागवत पुराण मे बताया गया है कि जब युधिष्ठिर जीवित ही अवस्था में स्वर्ग लोक पहुंचे तो वहाँ उन्होंने स्वर्ग और नरक दोनों को देखा। जैसे ही उसने स्वर्ग में प्रवेश किया तो उसे वहाँ दुर्योधन दिखाई पड़ा और अपने भाइयों से भी उसकी मुलाक़ात हुई। तब भीम यहाँ बड़ी जिज्ञासा के साथ अपने इन भाइयों से पूछने लगा कि भैया यह दुष्ट दुराचारी दुर्योधन जो आजीवन अधर्म अनीति व अन्याय का बीज बोता रहा उसने अपने पूरे जीवन मे कोई अच्छा कार्य नहीं किया इसके बावजूत भी उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई ऐसा क्यों? क्या भगवान ने न्याय अन्याय मे कोई अंतर नहीं रखा है मुझे तो लगता है भगवान के न्याय मे अंधेरी है। तब भीम की बातों को सुनकर उसके भाई बोले नहीं भीम ऐसा नहीं है भगवान के विधान के अनुरूप प्रत्येक धर्म कर्म व पुण्य का परिणाम चाहे वह किंचित ही क्यों न हो, स्वर्ग मिलता है। सभी बुराइयों के होते हुए भी दुर्योधन के पास एक सद्गुण था जिसके कारण उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। उनकी इस बात को सुनकर भीम ने पूंछा कि उसने ऐसा क्या कार्य किया है? जिसके कारण उसे स्वर्ग मिला- तब भाइयों ने बताया कि वह अपने संस्कारों व कर्तव्यों के कारण जीवन को सही दिशा भले ही न दे सका हो परंतु उसका मार्ग अवश्य सही था। दुर्योधन ने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने लिये एकाग्रता व साहस के साथ जुटा रहा उससे घबराया नहीं और अपने पूर्ण विश्वास के साथ उद्देश के प्रति अग्रसर रहा । इसी तरह यदि व्यक्ति को कुछ अच्छा करना है, जीवन मे कुछ बनना है, कुछ पाना है तो अपने लक्ष के प्रति एकनिष्ठ रहना अति आवश्य है वही व्यक्ति का सबसे बड़ा सद्गुण है इसी सद्गुण के कारण भी उसे स्वर्ग मिल सकता है प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में किसी भी कार्य को करने के लिये एकाग्रता का होना अतिआवश्यक है। बड़ी से बड़ी तांत्रिक विद्या को नष्ट करता है ये उपाये असफलता का एक कारण गृहदोष भी हो सकता है ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना मतलब भगवान मिल जाना ऐसी संतान से अच्छा है कि संतान ही न हो गुरु के दर्शन करने से क्या लाभ होता है?