संभवत 5000 वर्ष पहले पुरानी गीता को हिन्दू धर्म का सबसे प्रमुख और पवित्र ग्रन्थ माना जाता है. इस ग्रन्थ में कलयुग के बारे में कई ऐसी बातें कई गयी है जो आज सच हो रही है. ततश्चानुदिनं धर्मः सत्यं शौचं क्षमा दया । कालेन बलिना राजन् नङ्‌क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥ अर्थ: धर्म, सत्यवादिता, स्वच्छता, सहिष्णुता, दया, जीवन की अवधि, शारीरिक शक्ति और स्मृति सभी दिन-ब-दिन कम होती चली जाएगी. वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः । धर्मन्याय व्यवस्थायां कारणं बलमेव हि ॥ अर्थ: कलयुग में जिस व्यक्ति के पास जितना धन होगा वह उतना गुणी माना जाएगा और कानून, न्याय केवल एक शक्ति के आधार पर लागू किया जाएगा. दाम्पत्येऽभिरुचिर्हेतुः मायैव व्यावहारिके । स्त्रीत्वे पुंस्त्वे च हि रतिः विप्रत्वे सूत्रमेव हि॥ अर्थ: इस युग में पुरुष-स्त्री बिना विवाह के ही केवल एक-दूसरे में रूचि के अनुसार साथ रहेंगे. व्यापार की सफलता छल पर निर्भर करेगी। कलयुग में ब्राह्मण सिर्फ एक धागा पहनकर ब्राह्मण होने का दावा करेंगे. लिङ्‌गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् । अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं पाण्डित्ये चापलं वचः ॥ अर्थ: जो मनुष्य घूस देने या धन खर्च करने में असमर्थ होगा, उसे अदालतों से ठीक-ठाक न्याय न मिल सकेगा. जो व्यक्ति बहुत चालाक और स्वार्थी होगा वो इस युग में बहुत विद्वान माना जाएगा. क्षुत्तृड्भ्यां व्याधिभिश्चैव संतप्स्यन्ते च चिन्तया । त्रिंशद्विंशति वर्षाणि परमायुः कलौ नृणाम्॥ अर्थ: लोग भूख-प्यास और कई तरह की चिंताओं से दुखी रहेंगे. कई तरह की बीमारियां उन्हें हर समय घेरे रहेगी. कलियुग में मनुष्य की उम्र केवल बीस या तीस वर्ष की होगी. दूरे वार्ययनं तीर्थं लावण्यं केशधारणम् । उदरंभरता स्वार्थः सत्यत्वे धार्ष्ट्यमेव हि ॥ अर्थ: लोग दूर के नदी-तालाबों को तो तीर्थ मानेंगे, लेकिन अपने पास रह रहे माता-पिता की निंदा करेंगे. सिर पर बड़े-बड़े बाल रखना ही सुंदरता मानी जायेगी और केवल पेट भरना ही लोगो का लक्ष्य होगा. अनावृष्ट्या विनङ्‌क्ष्यन्ति दुर्भिक्षकरपीडिताः शीतवातातपप्रावृड् हिमैरन्योन्यतः प्रजाः ॥ अर्थ: कभी बारिश न होगी, सूखा पड़ जाएगा. कभी कड़ाके की सर्दी पड़ेगी तो कभी भीषण गर्मी हो जायेगी. कभी आंधी आएगी तो कभी बाढ़ आ जाएगी. इन परिस्तिथियों से लोग परेशान होंगे और नष्ट होते जाएंगे. अनाढ्यतैव असाधुत्वे साधुत्वे दंभ एव तु । स्वीकार एव चोद्वाहे स्नानमेव प्रसाधनम् ॥ अर्थ: इस युग में जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होगा वो अधर्मी, अपवित्र और बेकार माना जाएगा. विवाह दो लोगों के बीच बस एक समझौता होगा और लोग बस स्नान करके समझेंगे की वो अंतरात्मा से शुद्ध हो गए हैं. दाक्ष्यं कुटुंबभरणं यशोऽर्थे धर्मसेवनम् । एवं प्रजाभिर्दुष्टाभिः आकीर्णे क्षितिमण्डले ॥ अर्थ: कर्म के काम केवल लोगों के सामने अच्छा दिखने और दिखावे के लिए किए जाएगे. पृथ्वी भ्रष्ट लोगों से भर जाएगी और लोग सत्ता हासिल करने के लिए एक दूसरे को मारेंगे. आच्छिन्नदारद्रविणा यास्यन्ति गिरिकाननम् । शाकमूलामिषक्षौद्र फलपुष्पाष्टिभोजनाः ॥ अर्थ: अकाल और अत्याधिक करों के कारण परेशान लोग घर छोड़ सड़कों व पहाड़ों पर रहने को मजबूर हो जाएंगे, साथ ही पत्ते, जड़, मांस, जंगली शहद, फूल और बीज खाने को मजबूर हो जाएंगे.