पुणे: रिपब्लिकन युवा मोर्चा के अध्यक्ष राहुल दमबाले इस साल जून में जेएन पटेल कमीशन में हलफनामे जमा करने वाले पहले व्यक्ति थे, इस कमीशन को भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच के लिए गठित किया गया था. पुणे निवासी राहुल भीमा कोरेगांव गांव हिंसा के प्रत्यक्षदर्शी है और पीड़ितों को न्यायिक पैनल के सामने शपथ पत्र दाखिल कराने में सक्रिय रूप से शामिल रहे है. लेकिन राहुल ने जो वर्तमान में भीम कोरेगांव संघर्ष की जांच कर रही है पुणे पुलिस पर संदेह ज़ाहिर किया है. उनका संदेह इस बात को लेकर है कि पिछले 7 महीनों से, भीम कोरेगांव हिंसा के पीड़ित न्याय के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. एफआईआर में 1,500 दंगाइओं को नामित किए गए थे, फिर भी उनमें से 10 प्रतिशत भी पुलिस द्वारा अब तक गिरफ्तार नहीं किए गए हैं. ऐसे कई पीड़ित हैं जिन्हें ऊपरी जाति के पुरुषों द्वारा पीटा गया था; उनकी दुकानों को जला दिया गया, फिर भी उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है. दरअसल पुणे पुलिस का मानना है कि 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम, एल्गार परिषद, भीम कोरेगांव में हिंसक संघर्षों की शुरुआत हुई थी. इसके लिए पुलिस ने राहुल को भी नोटिस भेजा है, इस बारे में राहुल का कहना है कि इस तथ्य के बावजूद कि मैं एल्गार परिषद की आयोजन समिति का हिस्सा नहीं था, मुझे पुणे पुलिस से एक नोटिस मिला. उन्होंने आरोप लगते हुए कहा है कि हमारे जैसे लोगों को लक्षित करने और दबाव बनाने के लिए, पुणे पुलिस द्वारा यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) का दुरुपयोग किया जा रहा है.राहुल ने हाल ही में गिरफ्तार किए गए 5 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी पर भी सवाल उठाते हुए कहा है कि दिल्ली और अन्य स्थानों में गिरफ्तारी के बाद मैं आश्चर्यचकित हूँ, मुझे महाराष्ट्र एटीएस द्वारा सनातन संस्थान सदस्यों की गिरफ्तारी की पृष्ठभूमि में, पुलिस की कार्रवाई एक विविध रणनीति की तरह दिखती है. खबरें और भी:- भीमा कोरेगांव हिंसा: गिरफ्तार लोगों ने रचा था सरकार के खिलाफ षड्यंत्र, महाराष्ट्र पुलिस ने किया सबूत होने का दावा आखिर क्या है भीमा कोरेगांव मामला ? भीमा कोरेगांव मामला : सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को जारी किया नोटिस