पुणे: भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में 28 अगस्त को पुलिस ने देश के अलग-अलग राज्यों में छापेमारी कर 5 लोगों को हिरासत में लिया है, ये पांच लोग देश भर में सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में विख्यात हैं, इनमे से कोई लेखक है, कोई वकील है कोई मानवाधिकार कार्यकर्ता है, साथ ही ये लोग वामपंथी भी हैं, ऐसे में इनकी गिरफ़्तारी पर बवाल मचना तो स्वाभाविक ही है. कल ही इनकी गिरफ़्तारी हुई और आज ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है. इन लोगों ने किसी पर गोलियां नहीं चलाई थी, पर भीमा-कोरेगांव में जो भी हिंसा हुई, वो 1 दिसंबर, 2017 को पुणे में यलगार परिषद के दौरान इनकी भड़काऊ टिपण्णी की वजह से ही हुई थी. तो आइए जानते हैं कौन हैं ये 5 बुद्धिजीवी जिनकी जुबान हिलने से पूरा देश हिल गया था. सुधा भारद्वाज अमेरिका में जन्मी सुधा एक नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और वकील हैं, 11 साल की उम्र में वे अमेरिका छोड़ भारत आ गई थी. उसके बाद से वे पिछले 30 सालों से छत्तीसगढ़ में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ, मजदूरों के अधिकारों के लिए, दलित और जनजातीय अधिकारों के खिलाफ लड़ती आई हैं. फिलहाल वे दिल्ली के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में लॉ पढ़ाती हैं. इन्हे फरीदाबाद से गिरफ्तार किया गया है. वरवर राव तेलंगाना के वारंगल के रहने वाले वरवर राव अपने क्रांतिकारी लेखन और सार्वजनिक भाषणों के लिए जाने जाते हैं, इससे पहले उनके लेखन के लिए 1974 में वे एक महीने की जेल भी काट चुके हैं. इन पर पीएम मोदी की हत्या की साजिश करने का आरोप भी लगा है. वरवर राव हैदराबाद स्थित अपने घर से गिरफ्तार किए गए. अरुण परेरा नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और लेखक अरुण मुंबई के रहवासी हैं, इनके तार महाराष्ट्र के नक्सलवाद और माओवाद से भी जुड़े हैं. इनके खिलाफ 20 मामले दर्ज थे, लेकिन सबूत न मिलने के चलते 2014 में उन्हें सभी मामलों में बरी कर दिया गया था, पहले भी पांच साल जेल काट चुके अरुण मुंबई से गिरफ्तार किए गए. वर्णन गोन्साल्वेज मुंबई के ही वर्णन के सम्बन्ध महाराष्ट्र के नक्सलवाद से जोड़े जाते रहे हैं, जबकि उनके साथियों द्वारा उन्हें न्याय, समानता और आज़ादी का पैरोकार बताया जाता है. 2007 में शस्त्र अधिनियम में गिरफ्तार किए गए वर्णन के खिलाफ 20 आरोप थे, लेकिन 6 साल जेल काटने के बाद उन्हें बरी कर दिया गया, ये भी मुंबई से ही गिरफ्तार हुए. गौतम नवलखा पत्रकार और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम पीपुल्स यूनियन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) के सदस्य भी हैं, वो राजनीतिक और आर्थिक विषयों पर वीकली कॉलम भी लिखते हैं. उन्होंने मानवाधिकार को लेकर कश्मीर में भी काफी काम किया है, 2011 में उन्हें इन्ही कारणों से श्रीनगर एयरपोर्ट से वापिस भेज दिया गया था. इन्हे दिल्ली से गिरफ्तार किया गया है. ये भी पढ़ें:- अब सुप्रीम कोर्ट तक पंहुचा भीमा कोरेगांव हिंसा मामला जन्म दिन विशेष : मेजर ध्यानचंद को कभी हिटलर ने किया था जर्मनी नागरिकता का ऑफर लड़कियों के लिए मानसिक और भावनात्मक घाव है खतना : सुप्रीम कोर्ट