भारत रत्न, पद्म श्री, पद्म भुषण, पद्म विभूषण, महाराष्ट्र भुषण, पंडित भीमसेन जोशी किराना घराने के शास्त्रीय गायक थे. 19 साल की उम्र से गायन शुरू करने के बाद वे सात दशकों तक शास्त्रीय गायन करते रहे. भीमसेन जोशी ने कर्नाटक के साथ साथ देश को गौरवान्वित किया है. उनकी योग्यता का आधार उनकी महान संगीत साधना है. देश-विदेश में लोकप्रिय हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के महान गायकों में उनकी गिनती होती थी. पंडित रामभाऊ कुंडालकर से उन्होने शास्त्रीय संगीत की शुरूआती शिक्षा ली. अपनी संगीत शिक्षा से संतुष्ट न हो कर भीमसेन ग्वालियर भाग आये और वहाँ के 'माधव संगीत विद्यालय' में प्रवेश ले लिया. वर्ष 1941 में भीमसेन जोशी ने 19 वर्ष की उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी. पंडित भीमसेन जोशी जी खयाल, भजन तथा अभंग गाने के लिए जाने जाते हैं उनकी ईश्वरीय आवाज पीड़ा और परमानंद के भिन्न धरातलों की परतें खोल देती है .वो जिस उत्साह के साथ ‘तोड़ी’ और ‘कल्याण’ जैसे बड़े राग को विविधता में पेश करते हैं, उसी उत्साह से उनके छोटे रूप, राग ‘भूप’ और ‘अभोगी’ का निर्वहन करते हैं. उन्होंने सिनेमा के लिए गाया, पार्श्वगायकों के साथ गाया. जब लता और मन्ना डे जैसे गायकों ने उनके साथ गाने में हिचकिचाहट जताई तो उनका उत्साहवर्धन भी किया. उनके बारे के दिलचस्प किस्सों है की वे बचपन में स्कूल से लौटते समय पंडितजी ग्रामोफोन रेकार्ड की दुकान पर रुककर गाने सुनते थे. पंडितजी तंबाकू वाला पान खाने का शौक रखते थे, साथ ही उन्हें कार चलाने का भी शौक था. ख्याल गायकी के सम्राट उ. अमीर खाँ साहब ने भी पंडितजी के बारे में कहा था कि मेरे बाद ये ख्याल गायकी को काफी आगे ले जाएगा. 24 जनवरी 2011 को ये महान विभूति दुनिया को अलविदा कह गई और पीछे छोड़ गई संगीत की बेशक़ीमती विरासत .