रियाध: सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) ने हाल ही में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ हुई बातचीत के दौरान फिलिस्तीनी मुद्दे को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल नहीं करने की बात कही। यह जानकारी अमेरिकी पत्रिका 'द अटलांटिक' की रिपोर्ट में सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार, यह बातचीत इस साल जनवरी में हुई थी जब ब्लिंकन सऊदी अरब के दौरे पर थे और इस दौरान गाजा में इजरायल के हमले और फिलिस्तीन मुद्दे पर चर्चा हुई थी। रिपोर्ट के अनुसार, क्राउन प्रिंस ने दो टूक कहा कि उन्हें फिलिस्तीन मुद्दे में कोई दिलचस्पी नहीं है और इसकी उन्हें कोई परवाह भी नहीं है। MBS ने कहा कि सऊदी अरब की लगभग 70 प्रतिशत आबादी 40 साल से कम उम्र की है, और उनमें से ज्यादातर को फिलिस्तीनी मुद्दे के बारे में बहुत कम जानकारी है। मौजूदा संघर्ष के कारण वे पहली बार फिलिस्तीन के मुद्दे के बारे में जान रहे हैं और इस पर ध्यान दे रहे हैं। इसलिए, चूंकि मेरी जनता फिलिस्तीन के बारे में कम परवाह करती है, मुझे भी इस मुद्दे पर व्यक्तिगत रूप से ज्यादा परवाह है। वहीं, 'मिडिल ईस्ट आई' की रिपोर्ट के अनुसार, सऊदी अधिकारियों ने इस बातचीत से जुड़े दावों का खंडन किया है। एक सऊदी अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि एमबीएस और ब्लिंकन के बीच ऐसी कोई टिप्पणी नहीं हुई है। हालांकि, इस संबंध में सऊदी अरब या अमेरिका की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, जिससे यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि वास्तव में एमबीएस ने यह बात कही है या नहीं। यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब दुनियाभर में गाजा-फिलिस्तीन और हमास के समर्थन में कई जगह विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं, लेकिन सऊदी अरब में ऐसे प्रदर्शन देखने को नहीं मिले। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि सऊदी सरकार ने फिलिस्तीन के समर्थन में होने वाले प्रदर्शनों की इजाजत नहीं दी थी। यहां तक कि मक्का-मदीना में फिलिस्तीनी झंडे लहराने वाले लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें डिपोर्ट भी किया गया। इस स्थिति में सवाल उठता है कि जिस जगह से इस्लाम का उदय हुआ, उसी सऊदी अरब में फिलिस्तीन के प्रति संवेदनशीलता का अभाव क्यों दिखाई दे रहा है? जबकि दुनियाभर के इस्लामी देशों में गाजा और फिलिस्तीन के समर्थन में आवाजें उठाई जा रही हैं। यह भी देखा गया है कि फिलिस्तीन के मुद्दे पर बड़े इस्लामी देश खुलकर समर्थन में सामने नहीं आते, और न ही इजरायल से टकराने के लिए कोई बड़ा कदम उठाते हैं। ईरान और इराक जैसे कुछ देशों ने हमास और हिजबुल्लाह जैसे आतंकवादी संगठनों को आर्थिक सहायता दी है, ताकि वे इनके माध्यम से इजरायल के खिलाफ संघर्ष कर सकें, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से कोई बड़ी कार्रवाई नहीं होती। ऐसे में यह सवाल वाजिब है कि क्या फिलिस्तीनी मुद्दे को लेकर सऊदी अरब की प्राथमिकताएं अब बदल गई हैं? क्या गाजा और फिलिस्तीन के प्रति उनकी पुरानी सोच अब बदल रही है? 'मुस्लिम आबादी बढ़ चुकी, अब तुम्हारा राज खत्म..', किसे धमकी दे रहे अखिलेश के विधायक? एक देश-एक चुनाव पर बनेगा कानून! संसद में 3 बिल पेश करेगी मोदी सरकार 500 के नोट पर अनुपम खेर की फोटो, ठगों ने ख़रीदा 2 करोड़ का सोना...