नई दिल्ली: शीर्ष अदालत ने कोरोना की वजह से लागू लॉकडाउन के दौरान यतीम और बेघर हुए बच्चों की तादाद में सरकारी आंकड़े और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के आंकड़ों में दस गुना अंतर को लेकर सवाल खड़े किए हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पास आए डाक्यूमेंट्स में दर्ज आंकड़ों के हवाले से सवाल किया कि सरकार 645 बच्चों को लेकर विभिन्न योजनाओं के तहत दस लाख रुपए खर्च कर रही है. अदालत ने कहा कि NCPCR यानी बाल अधिकार संरक्षण आयोग मार्च 2020 से जुलाई 2021 तक ऐसे अनाथ हुए बच्चों की तादाद 6855 बता रहा है. अदालत ने कहा कि हम लगातार जोर दे रहे हैं कि योजनाओं पर तत्काल अमल किया जाए. शीर्ष अदालत ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि इन आंकड़ों से तो लगता है कि सरकार की कथनी और करनी में बहुत अंतर है. शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार परियोजनाओं की घोषणा तो कर देती है, किन्तु अमल करने में फिसड्डी रह जाती है. शीर्ष अदालत ने कहा कि जिलों में बाल सुधार केंद्र, बाल संरक्षण केंद्र, उनके अधिकारियों की पूरी सेना है, किन्तु आंकड़े और हकीकत कुछ और ही हैं. सर्वोच्च न्यायालय में सरकार की तरफ से असिस्टेंट सॉलिसीटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने पक्ष रखा. ममता का 'मिशन दिल्ली', नाथ-PK के बाद अब पीएम मोदी से की मुलाक़ात बॉर्डर विवाद: मिजोरम से सटे 3 जिलों में कमांडो बटालियन तैनात करेगी असम सरकार JDU की मुकेश साहनी को चेतावनी- 'अगर NDA से अलग गए तो चिराग पासवान जैसा हाल होगा'