दलित सियासत में उलझ गई बिहार की राजनीति

बिहार की राजनीति में दलित मुद्दों ने एक नया मोड़ लिया है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में वर्गीकरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने बिहार की सियासत में हलचल मचा दी है। इस फैसले के विरोध में बुधवार को भारत बंद का आह्वान किया गया है। चिराग पासवान, जो बीजेपी के सहयोगी एलजेपी (आर) के प्रमुख और मोदी सरकार के मंत्री हैं, ने इस बंद का समर्थन किया है और अपनी पार्टी के साथ बिहार की सड़कों पर उतरकर दलित आरक्षण में कोटा के भीतर कोटा की व्यवस्था के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है।

चिराग पासवान ने भारत बंद का समर्थन करते हुए कहा कि जब तक समाज में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ छुआछूत जैसी प्रथाएँ हैं, तब तक इन समुदायों के लिए सब-कैटेगरी में आरक्षण और क्रीमीलेयर जैसे प्रावधानों की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। इससे पहले भी चिराग पासवान ने वक्फ एक्ट में बदलाव और केंद्र के मंत्रालयों में लेटरल एंट्री के जरिए भर्तियों पर एतराज जताया था। उनका कहना है कि सरकारी नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए और इसे निजी क्षेत्र में लागू नहीं किया जाता है तो यह सही नहीं है।

चिराग पासवान ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एससी और एसटी समुदाय में विभाजनकारी बताया और कहा कि इससे दलित समाज की एकता पर असर पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग इस विभाजन को बढ़ावा देना चाहते हैं क्योंकि वे दलित समाज की ताकत से डरते हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चिराग पासवान आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर दलित राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं और इसलिए इस मुद्दे पर मुखर हैं।

रामविलास पासवान के निधन के बाद से बिहार की दलित राजनीति में एक बड़ा खालीपन आ गया है। बिहार में दलित नेता तो हैं, लेकिन उनमें दलित वोट ट्रांसफर करने की ताकत नहीं है। 90 के दशक में लालू प्रसाद यादव की दलित राजनीति की अच्छी पकड़ थी, लेकिन मायावती की बसपा और रामविलास पासवान की लोजपा के आने के बाद दलित राजनीति में बदलाव आया। बिहार में जातिगत सर्वे के अनुसार, दलित समुदाय की आबादी 19.65 प्रतिशत है।

चिराग पासवान ने 2024 के लोकसभा चुनाव में पांच सीटें जीतकर मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री बने हैं। उन्होंने अपने चाचा पशुपति पारस को भी सियासी मात दी है। चिराग अब दलित राजनीति में मजबूत स्थान बनाने के प्रयास में हैं और दलित मुद्दों पर लगातार मुखर हो रहे हैं। उन्होंने खुद को रामविलास पासवान की सियासी विरासत का सच्चा वारिस साबित किया है और अब बिहार की सियासत में दलित चेहरे के रूप में खुद को स्थापित करने की कोशिश में हैं।

नीतीश कुमार ने 2007 में दलित समुदाय को दलित और महादलित में बांटा और महादलित आयोग का गठन किया। चिराग पासवान अब इस विभाजन के खिलाफ खड़े हैं और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर नाराज हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चिराग पासवान बिहार में दलित राजनीति में खुद को प्रमुख नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं और इसलिए दलित और महादलित दोनों को साथ लेकर चलना चाह रहे हैं।

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