भाजपा ने राहुल गांधी पर लगाया 'देशद्रोह' का आरोप, अमेरिका क्यों बचाव में उतरा?

नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में हाल ही में एक बड़ा विवाद उभरा है, जब बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर गंभीर आरोप लगाए। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान पात्रा ने कहा कि राहुल गांधी देश  को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राहुल गांधी अंतरराष्ट्रीय ताकतों और खोजी मीडिया समूहों का समर्थन लेकर देश के खिलाफ साजिश कर रहे हैं। 

संबित पात्रा ने अपने बयान में अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस का जिक्र किया और दावा किया कि कांग्रेस पार्टी सोरोस के एजेंडे पर काम कर रही है। उन्होंने फ्रांसीसी अखबार में 2 दिसंबर को प्रकाशित एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए राहुल गांधी पर देशद्रोह का आरोप लगाया। पात्रा ने कहा कि जॉर्ज सोरोस, OCCRP (ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट), और राहुल गांधी के बीच एक त्रिकोणीय संबंध है, जो भारत की एकता और विकास के खिलाफ काम कर रहा है। 

बीजेपी प्रवक्ता ने यह भी कहा कि कुछ ताकतें भारत को तोड़ना चाहती हैं और उसकी प्रगति में बाधा डालना चाहती हैं। उन्होंने अपने बयान में राहुल गांधी को गद्दार कहा और यह भी जोड़ा कि देशद्रोहियों को ऐसे ही संबोधन मिलने चाहिए। हालांकि, इस बयान पर अमेरिका की प्रतिक्रिया ने विवाद को और बढ़ा दिया। अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता ने इसे "बेहद निराशाजनक" बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि अमेरिका इस तरह की किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं है और फ्रीलांस पत्रकारों व संगठनों के विकास और स्वतंत्रता का समर्थन करता है। प्रवक्ता ने कहा कि लोकतांत्रिक देशों में प्रेस को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए और यह लोकतंत्र का एक अभिन्न हिस्सा है।

यहां सवाल उठता है कि आखिर राहुल गांधी पर जॉर्ज सोरोस के साथ कथित संबंधों और देशद्रोह के आरोप के संदर्भ में अमेरिका को प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या यह वाकई किसी अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है, या फिर यह केवल भारतीय राजनीति में उभरा एक और आरोप-प्रत्यारोप है? इस पूरे मामले में जॉर्ज सोरोस का नाम राहुल गांधी के साथ जोड़ने और OCCRP जैसी संस्था को लाने से यह मुद्दा केवल राष्ट्रीय राजनीति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गया। अमेरिका का बयान यह दर्शाता है कि यह मामला केवल राजनीतिक आरोप नहीं है, बल्कि इसमें अंतरराष्ट्रीय संबंधों और प्रेस की स्वतंत्रता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। 

आखिरकार, यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि राहुल गांधी और जॉर्ज सोरोस के बीच का कनेक्शन किस हद तक सच है। लेकिन यह विवाद भारत की राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक नया मोड़ जरूर लाया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा किस दिशा में आगे बढ़ता है।

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