दरभंगा : ये पाक माहे-रमजान अपने साथ सांप्रदायिक सोहाद्र की मिसाल लेकर चल रहा है. देश के हर कोने से रोजा तोड़कर जरूरतमंदों की मदद करने और रक्तदान करने की ख़बरें आ रही है जो हिंदुस्तान की तासीर को बयान कर रही है. अब एक और मिसाल सांप्रदायिक हिंसा का शिकार हुए दरभंगा से मिली है जहा एक युवक ने रमजान के महीने में जब पानी भी पीना मना होता है, इस युवक ने दो दिन के बच्चे की जान बचाने के लिए अपना रोजा तोड़ दिया. कुछ दिन पहले बिहार से ही ऐसा एक और मामला देखने को मिला था. दरभंगा में एक एसएसबी जवान रमेश सिंह के दो दिन की बच्ची को बचाने के लिए खून की जरूरत थी. जब अशफाक को इस बारे में पता चला तो बिना कुछ और सोचे वह निकल पड़े. उन्होंने बताया कि उन्हें लगा कि किसी की जान बचाना (रोजा बनाए रखने से) ज्यादा जरूरी है. जब उन्हें पता चला कि वह जरूरत एक सुरक्षाकर्मी की बेटी को है, तो वह और भी अधिक प्रेरित हुए और उन्होंने रोजा तोड़ दिया. दरअसल, खून देने के लिए कुछ खाना जरूरी होता है जबकि रोजे में पानी भी नहीं पी सकते हैं. बिहार के ही गोपालगंज में जावेद आलम नाम के एक व्यक्ति ने भी एक बच्चे की जान बचाने के लिए अपना रोजा तोड़ दिया था. उन्हें रोजे की वजह से अस्पताल ने खून देने से मना कर दिया था लेकिन फिर उन्होंने रोजा तोड़कर बच्चे के लिए खून दे दिया. गौरतलब है कि इबादत का ये भी तरीका है जो मिसाल बन गया. इसी माह देहरादून के आरिफ ने अजय नाम के बच्चे को और बिहार के जावेद आलम ने आठ साल की बच्चे को खून देने के लिए तोड़े ऱोजे. ऐसे में कहना होगा कि यही हिंदुस्तान है. मशहूर शायर राहत इन्दोरी ने कहा है ''हम अपनी जान के दुश्मन को भी अपनी जान कहते है, मोहब्बत की इसी धरती को हिंदुस्तान कहते है.'' ये मिसाल सही मायने में रोजे को मुकम्मल कर रही है और खुदा की सच्ची इबादत करते हुए माहे रमजान में सवाब कमाने का जरिया बन गई है. इबादत की मिसाल, जावेद ने हिन्दू बच्चे को लहू देने के लिए तोडा रोज़ा ''माहे रमज़ान'' ख़ुदा की इबादत का महीना