शिया-सुन्नी में खुनी संघर्ष, 37+ की मौत, 150 से अधिक घायल

इस्लामाबाद: पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के कुर्रम जिले में शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच लंबे समय से चला आ रहा संघर्ष एक बार फिर खूनी रूप में सामने आया है। जुलाई से जारी इस संघर्ष का ताजा हिंसक दौर 21 सितंबर से शुरू हुआ, जिसमें अब तक 37 से अधिक लोग मारे गए हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, शिया और सुन्नी समुदायों के बीच इस संघर्ष में 150 से अधिक लोग घायल हुए हैं। हिंसा का मुख्य कारण दोनों समुदायों के बीच चल रहा भूमि विवाद बताया जा रहा है।

 

हालांकि, आदिवासी परिषद (जिगरा) के माध्यम से संघर्ष को रोकने के प्रयास किए गए, लेकिन जिले के 10 इलाकों में हिंसा जारी रही। संघर्ष में भारी हथियारों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसमें स्वचालित और अर्ध-स्वचालित हथियारों के साथ-साथ मोर्टार शेल भी शामिल हैं। इस संघर्ष में अब तक 28 घर क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। सुरक्षा बलों की मौजूदगी के बावजूद शिया और सुन्नी समुदायों के बीच तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है। खैबर पख्तूनख्वा के प्रवक्ता सैफ अली ने बताया कि स्थिति को नियंत्रण में लाने के प्रयास जारी हैं, लेकिन संघर्ष अभी भी भड़का हुआ है। इससे पहले भी कई बार पाकिस्तान में शिया मुस्लिमों पर सुन्नियों ने हमला किया है, इसके पीछे कारण मजहबी अधिक है, बाकी दूसरी वजहें तो गौण हैं। जैसे सुन्नी मुहर्रम नहीं मनाते, लेकिन शिया मनाते हैं। अब जब शिया मुहर्रम का जुलुस निकालते हैं, तो सुन्नी उन पर हमला कर देते हैं, ठीक वैसे ही जैसे भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों में धार्मिक जुलूसों पर हमला होता है।

 

पाकिस्तान में शिया-सुन्नी विवाद का एक लंबा और जटिल इतिहास है। शिया समुदाय को देश की कुल आबादी का लगभग 15% माना जाता है, जबकि बहुसंख्यक सुन्नी हैं। इस विवाद की जड़ें इस्लाम के शुरुआती काल से जुड़ी हुई हैं, जब पैगंबर मोहम्मद के उत्तराधिकार को लेकर शिया और सुन्नी दो अलग-अलग धड़े बने। शिया समुदाय सुन्नियों को काफिर (गैर-मुस्लिम) मानता है, जबकि सुन्नी भी शियाओं को इस्लाम से बाहर समझते हैं। पाकिस्तान में शिया-सुन्नी संघर्ष तो गहरा है ही, लेकिन स्थिति अहमदिया समुदाय के लिए और भी गंभीर है। अहमदिया समुदाय, जो खुद को मुसलमान मानता है, रोज़ा, नमाज़ और अल्लाह-पैगंबर मोहम्मद को मानने के बावजूद शिया और सुन्नी दोनों द्वारा इस्लाम से बाहर कर दिया गया है। पाकिस्तान में अहमदियों की मस्जिदों को तोड़ा जाता है, उनकी कब्रों को भी नष्ट किया जाता है। यह दर्शाता है कि इस्लामिक दुनिया में धार्मिक संप्रदायवाद कितना गहरा बैठा हुआ है।

 

यहां यह समझना जरूरी है कि जब एक ही धर्म के अनुयायी शांति से नहीं रह सकते, तो अन्य धर्मों के लोगों के साथ संघर्ष स्वाभाविक हो जाता है। दुनियाभर में इस्लाम और अन्य धर्मों के बीच विवादों की कहानियां आम हैं—जैसे यूरोप में ईसाई-मुस्लिम संघर्ष, इजराइल में यहूदी-मुस्लिम संघर्ष, म्यांमार में बौद्ध-मुस्लिम संघर्ष, और भारत में हिंदू-मुस्लिम टकराव। इन संघर्षों के पीछे के कारणों को समझे बिना शांति की बातें करना व्यर्थ है। जब तक इन विवादों के मूल कारणों को हल नहीं किया जाएगा, तब तक किसी भी प्रकार की स्थायी शांति असंभव है।

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