नई दिल्ली: केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) बोफोर्स घोटाले की जांच के लिए जल्द ही अमेरिका को ज्यूडिशियल रिक्वेस्ट भेजने की योजना बना रही है। सीबीआई को निजी जासूस माइकल हर्शमैन से महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने की उम्मीद है, जिन्होंने 1980 के दशक के 64 करोड़ रुपये के रिश्वत कांड के बारे में भारतीय एजेंसियों के साथ जानकारी साझा करने की इच्छा जताई थी। अधिकारियों के अनुसार, सीबीआई ने इस साल अक्टूबर में अमेरिकी अधिकारियों को लेटर्स रोगेटरी (एलआर) भेजने की प्रक्रिया शुरू की थी, और अब औपचारिक अनुरोध भेजने में लगभग 90 दिन का समय लगने की संभावना है। 1980 के दशक में बोफोर्स स्वीडिश फर्म के साथ हुए सौदे में 64 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने के आरोप लगे थे, जब भारतीय सरकार ने 400 हॉवित्जर तोपों की आपूर्ति के लिए 1,437 करोड़ रुपये का अनुबंध किया था। इस मामले में कई प्रमुख आरोपियों के खिलाफ जांच की गई, लेकिन 2004 में दिल्ली हाई कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अन्य आरोपियों को बरी कर दिया। 2011 में इस मामले को बंद कर दिया गया था। हर्शमैन 2017 में भारत आए थे और उन्होंने आरोप लगाया था कि घोटाले की जांच कांग्रेस सरकार द्वारा पटरी से उतारी गई थी। उन्होंने यह भी कहा था कि वे सीबीआई के साथ अपने दावे साझा करने के लिए तैयार हैं। इसके बाद सीबीआई ने मामले की जांच फिर से शुरू करने की योजना बनाई। हालांकि, पहले के प्रयासों में जानकारी नहीं मिल पाई थी, जिससे अब सीबीआई ने एलआर का रास्ता अपनाया है, जिसके तहत अमेरिकी कोर्ट को औपचारिक सूचना के लिए अनुरोध भेजा जाएगा। यह मामला 1990 में दर्ज हुआ था, जब स्वीडिश रेडियो चैनल ने आरोप लगाया था कि बोफोर्स ने सौदा हासिल करने के लिए भारत के नेताओं और रक्षा अधिकारियों को रिश्वत दी थी। इस घोटाले ने राजीव गांधी की सरकार को घेर लिया था और विपक्षी दलों ने इसका इस्तेमाल कांग्रेस पर निशाना साधने के लिए किया था। चक्रवात फेंगल से तमिलनाडु में मची तबाही, बारिश और भूस्खलन में कई लोग फंसे गर्लफ्रेंड की हत्या के बाद 2 दिन तक शव के साथ सोता रहा बॉयफ्रेंड और... 'मुस्लिमों का मनोबल तोड़ना चाहती है सरकार..', संभल मुद्दे पर बोले शिवपाल यादव