'बच्ची का हाथ पकड़ना, पैंट की जिप खोलना यौन हमला नहीं...' बॉम्बे HC का एक और विवादित फैसला

नई दिल्ली: 'कपड़े उतारे बिना स्तन छूना यौन उत्पीड़न नहीं', बॉम्बे उच्च न्यायालय का यह फैसला बीते दिनों काफी विवादों में रहा, जिस पर अब शीर्ष अदालत ने भी रोक लगा दी है। अब बॉम्बे उच्च न्यायालय का ही एक और फैसला सामने आया है, जिसमें कहा गया है कि नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और पैंट की जिप खोलना पॉक्सो एक्ट के तहत यौन हमला नहीं माना जा सकता है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने यह माना कि IPC की धारा 354-ए (1) (i) के तहत ऐसा करना 'यौन उत्पीड़न' की श्रेणी में आता है।

बता दें कि इससे पहले 19 जनवरी को बॉम्बे HC की इसी पीठ ने कहा था कि व्यक्ति ने बच्ची के स्तन को उसके कपड़े हटाए बिना स्पर्श किया था, इसलिए उसे यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता। इसकी जगह यह IPC की धारा 354 के तहत महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का अपराध बनता है। दरअसल, 50 साल के शख्स को पांच साल की बच्ची से छेड़छाड़ के लिए दोषी पाए जाने की सजा के खिलाफ दाखिल आपराधिक अपील पर नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेडीवाला की एकल पीठ ने फैसला दिया। दरअसल, सत्र न्यायालय ने 50 वर्षीय इस शख्स को दोषी ठहराया था और उसे POCSO की धारा 10 के तहत दंडनीय 'यौन उत्पीड़न' मानते हुए छह माह के लिए एक साधारण कारावास के साथ पांच वर्ष के कठोर कारावास और 25,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। 

बच्ची की मां ने एक शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद यह मामला उजागर हुआ। शिकायत में बच्ची की मां ने बताया था कि उसने आरोपी को देखा था, जिसकी पैंट की जिप खुली हुई थी और उसने उसकी बेटी का हाथ पकड़े हुए था। बाद में गवाही में उन्होंने कहा कि उसकी बेटी ने उसे बताया कि आरोपी ने अपने पैंट से लिंग (पेनिस) निकाला और उसे बेड पर आकर सोने को कहा। बहरहाल, एकल पीठ ने पॉस्को एक्ट की धारा 8, 10 और 12 को इस सजा के लिए उपयुक्त नहीं माना और आरोपी को धारा 354A (1) (i) के तहत दोषी करार दिया, जिसमें ज्यादातर तीन साल की कैद की सजा का प्रावधान है। अदालत ने यह भी माना कि आरोपी ने पांच महीने जेल में सजा काट ली है, जो इस अपराध के लिए काफी हैं। 

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