एक महिला ही दूसरी महिला का दर्द समझ सकती है। यह बात आपने और हमने कई बार अपने इर्द-गिर्द सुनी ही होगी। अब चूँकि, प्रत्येक महिला को बेटी, बहन, पत्नी, माँ आदि के रूप में अपने दायित्व निभाने होते हैं और भारत में अधिकतर महिलाओं की दिनचर्या समान ही होती है। इस नज़रिए से ऊपर लिखी हुई बात सही मानी जा सकती है। लेकिन हमारे ही देश की एक महिला न्यायाधीश ने इस बात को झुठला दिया है। हम बात कर रहे हैं बॉम्बे हाई कोर्ट की महिला जज पुष्पा गनेड़ीवाला की, जिन्होंने दुष्कर्म और छेड़छाड़ जैसे संगीन मामलों में ऐसे फैसले दिए हैं, जिससे पूरा नारी वर्ग आहत हुआ है। इन्ही फैसलों के प्रति विरोध जताते हुए एक महिला देवश्री त्रिवेदी ने उन्हें कंडोम के पैकेट भी भेजे थे। आइए जानते हैं कि पुष्पा गनेड़ीवाला ने ऐसे कौन से फैसले दिए थे जिन पर बवाल मच गया था। कपड़ों के ऊपर से स्तन दबाना, यौन हमला नहीं, त्वचा से त्वचा का संपर्क जरुरी यह मामला 2016 का है. पुलिस ने आरोपी सतीश बंदू रागड़े के खिलाफ पोक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज किया था। आरोप था कि सतीश 12 साल की बच्ची को अपने घर ले गया था और उसने बच्ची का स्तन दबाया. जब बच्ची बहुत देर तक घर वापस नहीं लौटी तो उसकी मां उसे खोजने के लिए निकली। मां ने बच्ची को सतीश के घर पाया। पीड़िता ने अपनी माँ को पूरी आपबीती सुनाई, बाद में बच्ची ने मां को बताया कि सतीश उसे अमरूद देने की बात कहकर अपने घर ले गया था और उसने पीड़िता का स्तन दबाया. बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच में सुनवाई के दौरान जज पुष्पा गनेड़ीवाला की एकल बेंच ने फैसला सुनाते हुए आरोपी को POCSO एक्ट की धारा-8 के तहत बरी कर दिया गया, जिसमें उसे तीन वर्ष की न्यूनतम सजा मिल सकती थी। जज पुष्पा गनेड़ीवाला ने अपने फैसले में तर्क दिया कि ''12 साल की नाबालिग बच्ची को निर्वस्त्र किए बिना, उसके वक्ष स्थल (ब्रेस्ट) को छूना, यौन हमला नहीं माना जा सकता है। यौन हमला माने जाने के लिए ‘गंदी मंशा से त्वचा से त्वचा (स्किन टू स्किन) का संपर्क होना’ आवश्यक है, महज छूना भर यौन हमला नहीं माना जा सकता।'' हालाँकि, उनके इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर हुई थी, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने इस फैसले पर रोक लगा दी थी। पेंट की जीप खोलना, नाबालिग का हाथ पकड़ना.. यौन हमला नहीं वहीं एक अन्य मामले में विवादित फैसला देते हुए जज पुष्पा गनेड़ीवाला ने कहा था कि नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और पैंट की जिप खोलना पॉक्सो एक्ट के तहत यौन हमला नहीं माना जा सकता है। दरअसल, बच्ची की मां ने एक शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद यह मामला उजागर हुआ। शिकायत में बच्ची की मां ने बताया था कि उसने आरोपी को देखा था, जिसकी पैंट की जिप खुली हुई थी और उसने बच्ची का हाथ पकड़ रखा था। बाद में गवाही में उन्होंने कहा कि उसकी बेटी ने उसे बताया कि आरोपी ने अपने पैंट से लिंग (पेनिस) निकाला और उसे बेड पर आकर सोने को कहा। इस मामले में, सत्र न्यायालय ने 50 वर्षीय इस शख्स को दोषी करार देते हुए, उसे POCSO की धारा 10 के तहत दंडनीय 'यौन उत्पीड़न' मानते हुए छह माह के लिए एक साधारण कारावास के साथ पांच वर्ष के कठोर कारावास और 25,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। जिसके बाद मामला बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेडीवाला ने सुनवाई की। जज पुष्पा गनेड़ीवाला ने पॉस्को एक्ट की धारा 8, 10 और 12 को इस सजा के लिए उपयुक्त नहीं माना और आरोपी को धारा 354A (1) (i) के तहत दोषी करार दिया, जिसमें अधिकतर तीन साल की कैद की सजा का प्रावधान है। जज पुष्पा ने यह भी कहा था कि आरोपी ने पांच महीने जेल में सजा काट ली है, जो इस अपराध के लिए काफी हैं। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने पुष्पा गनेड़ीवाला की नियुक्ति पर जताई थी आपत्ति बता दें कि, उनके फैसलों से एक बार फिर ये बात सुर्ख़ियों में आ गई है कि सुप्रीम कोर्ट के दो दिग्गज जज, पुष्पा गनेड़ीवाला को बॉम्बे हाई कोर्ट में नियुक्त किए जाने के पक्ष में नहीं थे, फिर भी उन्हें यह नियुक्ति दी गई। दरअसल, 2017 में पहली बार जज पुष्पा की बॉम्बे उच्च न्यायालय में नियुक्त करने के लिए तीन सदस्यीय कॉलेजियम को प्रस्ताव भेजा गया था। इस कॉलेजियम में तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा, तत्कालीन न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर शामिल थे, उस समय कॉलेजियम ने जस्टिस पुष्पा की नियुक्ति की अनुशंसा नहीं की थी। लेकिन जनवरी 2019 में एक बार पुनः जस्टिस पुष्पा की बॉम्बे हाई कोर्ट में नियुक्ति के प्रस्ताव पर कॉलेजियम ने विचार किया। उस समय कॉलेजियम में तत्कालीन CJI रंजन गोगोई, तत्कालीन न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एके सीकरी शामिल थे। कॉलेजियम ने इस बार जस्टिस गनेड़ीवाला की नियुक्ति पर कॉलेजियम ने सहमति दे दी, जिसके बाद फऱवरी 2019 में उन्हें न्यायमूर्ति नियुक्त कर दिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उस समय न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, जस्टिस पुष्पा की नियुक्ति के खिलाफ थे। इन दोनों जजों का कहना था कि जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला को लीगल प्रैक्टिस करने से अधिक पढ़ाने का अनुभव है। दोनों जजों ने डिस्ट्रिक्ट जज के रूप में जज पुष्पा के फैसलों का उदाहरण देते हुए कहा था कि उनकी कानूनी समझ उच्च न्यायालय का जज बनने के लिहाज़ से परिपक्व नहीं है। मगर दोनों जजों की आपत्तियों को नज़रअंदाज़ करके पुष्पा गनेड़ीवाला को उच्च न्यायालय में जज बना दिया गया। हालाँकि, उनकी यह नियुक्ति स्थायी नहीं है, और अगर कुछ समय में उनकी नियुक्ति पर फैसला नहीं हुआ तो उन्हें वापस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट जाना पड़ सकता है। SC-ST एक्ट: 'काले कानूनों' की खिलाफत करने वाले इस पर चुप क्यों ? नर्क कर चुका है कई लोगों का जीवन जातिगत आरक्षण: वरदान या अभिशाप ? महिलाओं के अंडरवियर से लेकर मासिक धर्म तक के लिए जब नेताओं ने दिए थे ये विवादित बयान