मुंबई: बॉम्बे उच्च न्यायालय की औरंगाबाद बेंच ने सोमवार (26 जून) को नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को 28 सप्ताह के गर्भ को गिराने की इजाजत देने से इनकार कर दिया है. 15 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता के मेडिकल टेस्ट के बाद डॉक्टरों ने राय दी कि इस चरण में जबरन प्रसव कराने पर भी बच्चा जिन्दा पैदा होगा. मुंबई उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आरवी घुगे और न्यायमूर्ति वाईजी खोबरागड़े की पीठ ने दुष्कर्म पीड़िता की मां की तरफ से दाखिल याचिका के जवाब में आदेश जारी करते हुए गर्भपात की इजाजत देने से इनकार कर दिया. रिपोर्ट के अनुसार, नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता की मां की तरफ से दाखिल याचिका में उन्होंने अपनी बेटी के 28 सप्ताह के गर्भ को गिराने की इजाजत मांगी थी. याचिका में मां की तरफ से कहा गया कि उनकी बेटी फरवरी में गुमशुदा हो गई थी और तीन माह बाद राजस्थान में मिली थी. जहां एक व्यक्ति ने उसके साथ दुष्कर्म किया, जिससे वो गर्भवती हो गई थी. आरोपी व्यक्ति के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) के तहत केस दर्ज किया गया था. वहीं, पीड़िता अपने परिजनों के पास लौट आई थी. पीड़िता की जांच करने वाले मेडिकल बोर्ड ने कहा कि यदि नाबालिग का गर्भपात कराया जाता है, तो भी बच्चा जिन्दा पैदा होगा. इसके साथ ही नवजात और लड़की दोनों को खतरा होगा और बच्चे को निगरानी में भी रखना होगा. बॉम्बे उच्च न्यायायलय की बेंच ने चिंता जताई कि इस मामले में जबरन प्रसव के चलते संभावित विकृति वाले अविकसित बच्चे का जन्म हो सकता है. उच्च न्यायालय ने कहा कि, 'यदि किसी भी मामले में बच्चा पैदा होने वाला है और प्राकृतिक प्रसव केवल 12 सप्ताह दूर है, तो हमारा मानना है कि बच्चे के स्वास्थ्य और उसके शारीरिक-मानसिक विकास पर विचार करने की आवश्यकता है.' बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि जब आज भी एक जिन्दा बच्चा पैदा होने वाला है, तो हम बच्चे को 12 सप्ताह के बाद और चिकित्सकीय सलाह के तहत पैदा होने दे सकते हैं. यदि बाद में याचिकाकर्ता बच्चे को अनाथालय में देना चाहती है, तो उसे ऐसा करने की स्वतंत्रता होगी. उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि बच्चा अच्छी तरह से विकसित है और स्वाभाविक रूप से पूर्ण अवधि के बच्चे के रूप में पैदा हुआ है, तो कोई विकृति नहीं होगी और गोद लेने की उम्मीद बढ़ जाएगी. आदेश के बाद लड़की की मां ने उच्च न्यायालय से मांग की है कि लड़की को बच्चे को जन्म देने तक किसी NGO या अस्पताल में रखने की इजाजत दी जाए. कोर्ट ने कहा कि लड़की को या तो नासिक के आश्रय गृह में रखा जा सकता है, जो गर्भवती महिलाओं की देखरेख करता है या औरंगाबाद में महिलाओं के लिए सरकार के आश्रय गृह में भी रखा जा सकता है. उच्च न्यायालय ने ये भी कहा कि बच्चे के जन्म लेने के बाद लड़की ये फैसला लेने के लिए आजाद होगी कि उसे बच्चे को रखना है या बच्चे को गोद देना है. 'भाजपा में जल्द वापस लौटेगी नूपुर शर्मा..', ओवैसी के दावे से हड़कंप, बोले- जिसने हमारे रसूल... बिहार में दर्दनाक सड़क हादसा, टायर फटने के बाद ट्रक में जा घुसी बेकाबू बस, 5 की मौत, कई घायल 8 करोड़ कैश, 70 किलो सोना, 1500 करोड़ के फर्जी बिल, आयकर विभाग की छापेमारी में मिला खज़ाना