अंग्रेज़ों के कानून ख़त्म ! आज से लागू हुई भारतीय 'न्याय' व्यवस्था, पहली बार आतंकवाद को दी परिभाषा

नई दिल्ली: आज सोमवार (1 जुलाई) को, तीन नए आपराधिक कानून- भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) पूरे भारत में लागू हो गए। ये कानून क्रमशः ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) की जगह लेते हैं, जो देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण सुधार को चिह्नित करते हैं। देश के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ भी इन कानूनों की तारीफ कर चुके हैं और इसे बदलते तथा बढ़ते भारत का संकेत बता चुके हैं। हालाँकि, भारत का पूरा विपक्ष इसका पुरजोर विरोध कर रहा है और आज संसद में भी विपक्ष द्वारा इसके खिलाफ हंगामा करने के आसार हैं।

इन नए कानूनों के तहत पहली FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दिल्ली के कमला मार्केट पुलिस स्टेशन में एक रेहड़ी-पटरी वाले के खिलाफ दर्ज की गई थी। भारतीय न्याय संहिता की धारा 285 के तहत दर्ज किए गए मामले में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक फुटओवर ब्रिज को अवैध रूप से बाधित करने का आरोप शामिल था। इन परिवर्तनों की तैयारी में, राष्ट्रीय राजधानी भर में विभिन्न स्थानों, विशेष रूप से पुलिस स्टेशनों पर नए कानूनों के बारे में शैक्षिक पोस्टर प्रदर्शित किए गए थे। कनॉट प्लेस, तुगलक रोड और तुगलकाबाद जैसे पुलिस स्टेशनों पर देखे गए इन पोस्टरों में नए कानूनों और उनके द्वारा लाए जाने वाले बदलावों के बारे में जानकारी दी गई थी।

भारतीय न्याय संहिता:-

भारतीय न्याय संहिता में 358 धाराएँ हैं, जो IPC की 511 धाराओं से कम हैं। संहिता में 20 नए अपराध शामिल किए गए हैं और 33 अपराधों के लिए कारावास की सज़ा बढ़ाई गई है। इसके अतिरिक्त, 83 अपराधों के लिए जुर्माना बढ़ाया गया है और 23 अपराधों के लिए अनिवार्य न्यूनतम सज़ाएँ पेश की गई हैं। छह अपराधों के लिए दंड के रूप में सामुदायिक सेवा शुरू की गई है और 19 धाराओं को निरस्त कर दिया गया है।

"महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध" नामक एक नया अध्याय यौन अपराधों को संबोधित करता है और 18 वर्ष से कम आयु की महिलाओं के बलात्कार से संबंधित प्रावधानों में बदलाव का प्रस्ताव करता है। यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (Pocso) के अनुरूप प्रावधान शामिल किए गए हैं, जिसमें नाबालिगों के सामूहिक बलात्कार के लिए आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान है। सामूहिक बलात्कार के सभी मामलों में, सज़ा 20 वर्ष से मरते दम तक कारावास तक है।

संहिता धोखाधड़ी वाली यौन गतिविधियों को भी लक्षित करती है, जैसे कि शादी के झूठे वादे के तहत यौन संबंध बनाना। पहली बार भारतीय कानूनों में आतंकवाद को परिभाषित किया गया है और इसे दंडनीय अपराध बनाया गया है, जिसमें बम, डायनामाइट, विस्फोटक पदार्थ और जहरीली गैसों का उपयोग करने जैसे कृत्यों के लिए मृत्युदंड या बिना पैरोल के आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है। यहाँ तक की जाली नोट बनाना और उनके वितरण में शामिल होने को भी आतंकवाद की श्रेणी में रखा गया है। क्योंकि, ये देश की आर्थिक स्थिति के लिए खतरा होते हैं और जाली नोटों से आतंकवाद की फंडिंग भी होती है। 

भारतीय न्याय संहिता की धारा 113. (1) में कहा गया है कि "जो कोई भी भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा या संप्रभुता को खतरे में डालने के इरादे से या खतरे में डालने की संभावना रखता है या भारत में या किसी विदेशी देश में जनता या जनता के किसी वर्ग के बीच आतंक पैदा करने या फैलाने के इरादे से, किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की मृत्यु करने, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने या मुद्रा का निर्माण या तस्करी करने आदि के इरादे से बम, डायनामाइट, विस्फोटक पदार्थ, जहरीली गैसों, परमाणु का उपयोग करके कोई कार्य करता है, तो वह आतंकवादी कृत्य करता है।" संहिता में आतंकवादी कृत्यों के लिए मृत्युदंड या बिना पैरोल के मरते दम तक कारावास का प्रावधान है। संहिता में विभिन्न प्रकार के आतंकवादी अपराधों का भी उल्लेख किया गया है तथा बताया गया है कि सार्वजनिक सुविधाओं या निजी संपत्ति को नष्ट करना भी आतंकी अपराध है। ऐसा अक्सर दंगों में देखने को मिलता है। ऐसे कार्य जो 'महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को क्षति या विनाश के कारण व्यापक नुकसान' पहुंचाते हैं, वे भी इस धारा के अंतर्गत आते हैं।

अन्य महत्वपूर्ण बदलावों में शून्य FIR दर्ज करने की प्रथा को संस्थागत बनाना शामिल है, जिससे अपराध के स्थान की परवाह किए बिना FIR दर्ज करने की अनुमति मिलती है। पीड़ितों के सूचना के अधिकार को सुनिश्चित किया गया है, जिसमें 90 दिनों के भीतर FIR की एक निःशुल्क प्रति और जांच पर अपडेट प्राप्त करने का अधिकार शामिल है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता:-

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएँ हैं, जो CrPC में 484 धाराओं से अधिक है। अधिनियम में 177 प्रावधानों में बदलाव किया गया है, जिसमें नौ नई धाराएँ और 39 नई उप-धाराएँ जोड़ी गई हैं। इसमें 44 नए प्रावधान और स्पष्टीकरण पेश किए गए हैं, 35 धाराओं में समयसीमाएँ जोड़ी गई हैं और 35 स्थानों पर ऑडियो-वीडियो प्रावधान शामिल किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, 14 धाराओं को निरस्त कर दिया गया है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम:-

भारतीय साक्ष्य अधिनियम में अब 167 से बढ़कर 170 प्रावधान हो गए हैं। अधिनियम में 24 परिवर्तित प्रावधान, दो नए प्रावधान, छह नए उप-प्रावधान और छह प्रावधानों को निरस्त करना शामिल है। ये सुधार भारत की आपराधिक न्याय प्राथमिकताओं में बदलाव को दर्शाते हैं, जिसमें महिलाओं, बच्चों और राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ अपराधों पर जोर दिया गया है।

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