दो सांसदों वाले 'वायनाड' में आदिवासी युवक की निर्मम हत्या, क्या पीड़ित परिवार से मिलने जाएंगे राहुल-प्रियंका?

वायनाड: प्रियंका गाँधी के हालिया लोकसभा क्षेत्र वायनाड में दो दर्दनाक घटनाओं ने वहाँ की बदहाल प्रशासनिक व्यवस्था और राजनीतिक नेतृत्व की पोल खोल दी है। जनजातीय (ST) समुदाय, जो दशकों से उपेक्षा का शिकार रहा है, आज भी अपनी बुनियादी जरूरतों और सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है।  

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार (16 दिसंबर 2024) को वायनाड में 76 वर्षीय आदिवासी महिला चूंडम्मा का निधन उनके घर पर हुआ। अंतिम संस्कार के लिए परिजनों ने जनजातीय विकास विभाग से एंबुलेंस की माँग की, लेकिन घंटों इंतजार के बावजूद एंबुलेंस नहीं पहुँची। आखिरकार, मजबूर होकर परिवार को शव को ऑटोरिक्शा में ले जाना पड़ा। शव को एक चादर में लपेटा गया था, लेकिन ऑटोरिक्शा की तंग जगह के कारण शव का कुछ हिस्सा बाहर लटकता नजर आया।  

यह तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए, जिससे प्रशासन की घोर लापरवाही उजागर हुई। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने इस घटना को लेकर प्रदर्शन जरूर किया, लेकिन सवाल उठता है कि क्या प्रदर्शन करके जिम्मेदारियाँ पूरी हो जाती हैं? अधिकारियों ने स्थानीय पदाधिकारी को दोषी ठहराते हुए निलंबित कर दिया है। हालाँकि, यह मामला केरल सरकार के जनजातीय मंत्री ओ आर केलू के क्षेत्र का है, जिनकी इस घटना पर चुप्पी हैरान करती है।  

वायनाड के मंनथवडी क्षेत्र में रविवार (15 दिसंबर 2024) को 49 वर्षीय आदिवासी युवक माथन पर जानलेवा हमला हुआ। माथन अपने भाई वीनू के साथ दुकान पर सामान खरीदने गए थे, जहाँ कुछ हमलावरों ने पहले उन पर पत्थरबाजी की और फिर उन्हें कार से बाँधकर करीब आधे किलोमीटर तक घसीटा। इस घटना में माथन को गंभीर चोटें आई हैं। डॉक्टरों के अनुसार, उनके पैरों का मांस बुरी तरह उधड़ चुका है और उनकी हालत नाजुक बनी हुई है।  

पुलिस ने हमलावरों की पहचान मोहम्मद अर्शिद, अभिराम, विष्णु और नावील कुमार के रूप में की है। घटना में इस्तेमाल की गई कार मलप्पुरम जिले के निवासी मोहम्मद रियास के नाम पर पंजीकृत है। पुलिस ने कार जब्त कर ली है और आरोपियों की तलाश जारी है।  

इन दोनों घटनाओं ने कांग्रेस की तथाकथित “संवेदनशील” राजनीति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बीजेपी के केरल अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने इन घटनाओं को लेकर प्रियंका गाँधी और मुख्यमंत्री पिनराई विजयन पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “उत्तर भारत की घटनाओं पर चिल्लाने वाले वायनाड में आदिवासी युवक पर हुए अत्याचार पर चुप क्यों हैं? क्या यह इसलिए है क्योंकि घटना आपके नैरेटिव को सूट नहीं करती?” 

यह सवाल लाजमी है कि कांग्रेस के नेता, अक्सर केवल उन घटनाओं में सक्रिय नजर आते हैं, जहाँ मुस्लिम समुदाय पीड़ित होता है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के संभल जिले में जब धारा 144 लागू थी, तब राहुल गांधी समेत कई कांग्रेस नेता जिद करके वहाँ पीड़ितों से मिलने की जिद पकड़ लिए थे। लेकिन प्रियंका गाँधी के खुद के संसदीय क्षेत्र वायनाड में आदिवासियों के साथ हुए अत्याचारों पर उनकी चुप्पी शर्मनाक है।  

वायनाड की ये घटनाएँ कोई पहली बार नहीं हुई हैं। जनजातीय समुदाय लंबे समय से प्रशासनिक उपेक्षा और अत्याचार का शिकार है। शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे बुनियादी मुद्दे आज भी वहाँ के आदिवासियों के लिए एक सपना हैं। कांग्रेस और वामपंथी सरकारें सिर्फ चुनावों के समय इन समुदायों को “वोट बैंक” की तरह इस्तेमाल करती हैं।  ये वही वायनाड है, जहाँ राहुल गांधी ने दो सांसद होने का वादा किया था, जहाँ एक तो वो खुद हैं, दूसरी उनकी बहन है। अब देखने ये है कि दोनों सांसदों में से कौन वहां जाता है और पीड़ित परिवार से मुलाक़ात करता है ? 

चूंडम्मा के शव को ऑटोरिक्शा में ले जाना और माथन को कार से घसीटे जाने की घटनाएँ स्पष्ट करती हैं कि वायनाड की स्थिति बेहद गंभीर है। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व की चुप्पी यह दर्शाती है कि उनका गुस्सा और संवेदनशीलता “सेलेक्टिव” है। सवाल यह है कि क्या प्रियंका गाँधी वायनाड में इन पीड़ित परिवारों से मिलने की कोशिश करेंगी? या फिर कांग्रेस नेता केवल उन जगहों पर जाते हैं जहाँ उन्हें राजनीतिक फायदा मिलता हो?  

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