2500 साल से मनाया जा रहा त्यौहार अब नहीं मनाएंगे बौद्ध! इस्लामी कट्टरपंथियों की दहशत

ढाका: बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ जारी उत्पीड़न का अंत होते नहीं दिख रहा है। हाल ही में चटगाँव हिल ट्रैक्ट्स (CHT) में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं ने "कथिन चिबर दान" नामक अपने प्रमुख धार्मिक उत्सव को रद्द करने का फैसला किया। इस निर्णय का कारण क्षेत्र में बढ़ती असुरक्षा और चरमपंथियों द्वारा किए जा रहे हमलों को बताया गया। यह उत्सव हर साल बौद्ध अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है, लेकिन इस बार भिक्षुओं ने 6 अक्टूबर को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वे वर्तमान स्थिति को देखते हुए इस साल इसे नहीं मना पाएंगे। उन्होंने कानून प्रवर्तन अधिकारियों पर हिंसा में शामिल होने का भी आरोप लगाया।

 

भिक्षुओं ने 18 से 20 सितंबर और 1 अक्टूबर के बीच खगराचारी और रंगमती में हुई घटनाओं का हवाला दिया, जहां सैकड़ों दुकानों को लूट लिया गया, आगजनी की गई और मंदिरों को अपवित्र किया गया। चार लोगों की हत्या और बौद्ध मंदिरों में दान पेटियों और मूर्तियों का अपमान इन घटनाओं के गंभीर परिणामों में शामिल हैं। बौद्ध भिक्षुओं का कहना है कि इन हमलों के बाद स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि वे इस बार अपने सबसे महत्वपूर्ण उत्सव को मनाने में असमर्थ हैं।

 

"कथिन चिबर दान" एक धार्मिक उत्सव है, जिसमें भिक्षुओं को कपास से बने वस्त्र भेंट किए जाते हैं। इस प्रथा की शुरुआत लगभग 2,500 साल पहले गौतम बुद्ध की एक नर्स बिशाखा द्वारा की गई थी, और यह भिक्षुओं के तीन महीने के एकांतवास के अंत का प्रतीक है। बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों के हाथों हिंदुओं पर हमले भी बढ़ते जा रहे हैं। 28 सितंबर और 1 अक्टूबर को दुर्गा पूजा के दौरान हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़फोड़ किया गया। पबना जिले में दुर्गा पूजा मंडपों पर हमला कर मूर्तियों को खंडित कर दिया गया। छह दिनों में तीन मंदिरों में 16 मूर्तियों को नुकसान पहुँचाया गया है। ये हमले पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद से बढ़ते जा रहे हैं, और अब तक हिंदू मंदिरों, दुकानों और व्यवसायों पर 205 से अधिक हमले हो चुके हैं।

यहाँ एक बात ध्यान दिलाने योग्य है कि, भारत में जहाँ आज़ादी के बाद बने कुछ बौद्ध धर्मगुरु लोगों को खुलेआम हिन्दुओं के खिलाफ 11 शपथ दिलाकर बौद्ध धर्म अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, वहीं बांग्लादेश जैसे इस्लामी देश में बौद्ध भिक्षुओं को अपने त्यौहार मनाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। बौद्ध समुदाय को हिन्दुओं के साथ अपनी एकता प्रदर्शित करनी पड़ रही है, क्योंकि इस्लामी कट्टरपंथियों की नजरों में वे भी उतने ही गैर-मुस्लिम हैं, जितने कि हिंदू, सिख या ईसाई।

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