आप सभी जानते ही होंगे हर महीने में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है। जी हाँ और साल 2022 का आखिरी प्रदोष व्रत आज 21 दिसंबर, बुधवार को है। जी हाँ और प्रदोष व्रत भगवान भोलेनाथ को समर्पित किया गया है। इस दिन व्रत रखकर शिव जी और माता पार्वती की पूजा की जाती है। जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों का जीवन सुख-समृद्धि से भर देते हैं। जो भी जातक पूरी श्रद्धा से इस दिन व्रत रखता है उसके सभी कष्टों का नाश होता है। इसी के साथ इस दिन प्रदोष काल में की गई भगवान शिव की पूजा कई गुना ज्यादा फलदायी होती है। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं प्रदोष व्रत की कथा। आखिर क्यों की जाती है कांवड़ यात्रा?, इससे जुडी हैं तीन मान्यताएं प्रदोष व्रत की कथा- पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई सहारा नहीं था इसलिए वह सुबह होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। वह खुद का और अपने पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। क्या आप जानते हैं कैसे हुई शिवलिंग की उत्पत्ति?, आइए जानते हैं आज इसके बारे में राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। वैसा ही किया गया। ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करने के साथ ही भगवान शंकर की पूजा-पाठ किया करती थी। प्रदोष व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के साथ फिर से सुखपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। मान्यता है कि जैसे ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव से दिन बदले, वैसे ही भगवान शंकर अपने भक्तों के दिन फेरते हैं। श्रीमद्भागवत गीता पढ़ने के ये हैं नियम, ना मानने पर नहीं मिलेगा फल आखिर क्यों लगता है खरमास, जानिए इससे जुड़ी रोचक कथा आखिर किसने दिए थे श्री गणेश को शस्त्र?