कोलकाता: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में पश्चिम बंगाल सरकार को आदेश दिया है कि वह एक हिन्दू शख्स, हरिनंद दत्ता, को उसकी छिनी हुई नौकरी और उससे जुड़ी सभी पेंशन और लाभ तुरंत बहाल करे। हरिनंद दत्ता 1969 में अपने पिता के साथ पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से भारत आए थे। उस समय बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं और बंगालियों पर इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा अत्याचार किए जा रहे थे, जिससे बचने के लिए उन्होंने भारत में शरण ली थी। हरिनंद दत्ता और उनके पिता को भारत आने के बाद एक प्रवासी प्रमाण पत्र मिला, जिसमें उनका नाम दर्ज था। इसके बाद उन्होंने वोटर आईडी, राशन कार्ड और अन्य जरूरी दस्तावेज बनवाए। दत्ता ने कोलकाता में मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1985 में स्वास्थ्य विभाग में नौकरी पाई और कई वर्षों तक काम किया। लेकिन 2010 में, उनके रिटायरमेंट से ठीक दो महीने पहले, पुलिस की एक रिपोर्ट के आधार पर उनकी नागरिकता पर सवाल उठाते हुए उनकी नौकरी खत्म कर दी गई। पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, हरिनंद दत्ता नौकरी के लिए "अनुपयुक्त" थे। हालांकि, यह रिपोर्ट उन्हें दिखाई नहीं गई और न ही उन्हें अपनी सफाई पेश करने का कोई मौका दिया गया। सेवा ट्रिब्यूनल में दत्ता ने इस फैसले को चुनौती दी, जहां उन्हें राहत मिली, लेकिन कलकत्ता हाई कोर्ट ने सेवा ट्रिब्यूनल का फैसला पलटते हुए उनकी बर्खास्तगी को सही ठहराया। इसके बाद दत्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि भले ही दत्ता के पास पैन कार्ड, वोटर आईडी, आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज हों, लेकिन ये उनकी नागरिकता साबित नहीं करते। सरकार ने यह भी कहा कि पुलिस सत्यापन में देरी को उनकी नौकरी जारी रखने का आधार नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने दत्ता की दलीलों को सही ठहराते हुए पश्चिम बंगाल सरकार की कार्रवाई को गैरकानूनी बताया। कोर्ट ने कहा कि दत्ता के दादाजी भारतीय नागरिक थे, जिससे उनके पिता और वह खुद भी भारतीय नागरिक माने जाएंगे। कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) 2020 का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून भी दत्ता के पक्ष में है। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि दत्ता को अपनी सफाई देने का मौका क्यों नहीं दिया गया और पुलिस रिपोर्ट के आधार पर उनकी नौकरी छीनने का आदेश क्यों दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानून और न्याय के खिलाफ बताते हुए अवैध करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को आदेश दिया है कि हरिनंद दत्ता को उनकी नौकरी से संबंधित सभी लाभ, पेंशन और सुविधाएं तुरंत दी जाएं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बिना किसी कारण और उचित प्रक्रिया के किसी की नौकरी छीनना संविधान के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है। यह फैसला न केवल हरिनंद दत्ता के लिए न्याय लेकर आया, बल्कि यह भी स्थापित किया कि नागरिकता पर सवाल उठाकर किसी को बगैर सुनवाई के नौकरी से हटाना अवैध और असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट ने यह संदेश दिया है कि कानून और न्याय प्रणाली हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। उपराष्ट्रपति धनखड़ के खिलाफ अविश्वास-प्रस्ताव लाने की तैयारी में विपक्ष..! क्या संसद सत्र चल पाएगा..? खतरे में निर्मला सप्रे की सदस्यता! हाईकोर्ट से नोटिस जारी कर मांगा जवाब 'हमारी संपत्ति वक़्फ़ ने हड़प ली..', सांसदों के चक्कर लगा रहा सरकारी विभाग, सुनवाई होगी?