नए चिराग जलाने की रात आई है, सभी को अपना बनाने की रात आई है... ये पर्व है उजाले का, यह पर्व है अंधकार के विरुद्ध दुनिया में लड़ी गई सबसे बड़ी लड़ाई का...ये पर्व है मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम के सागर पार से जननी जन्म्भुमिशय स्वर्गादपि गरियाशी कही जाने वाली माता भारती पर दौबारा लौटने का..ये पर्व है उन सब उजालो को आपकी आत्मा में दीपित करने का जिसके कारण हम ब्रह्मास्मि कहलाते है...अशरफू मख़लूक़ात कहलाते है..आई एम द डिवाइन फ्लेम कहलाते है.. ये पर्व मनुष्यता का है और आदमीयता के इंसानियत के उजाले का है.. इसलिए इंसानियत के आंगन में झिलमिलाते कुछ दीपको के साथ आज न्यूज़ ट्रैक आपके लिए कुछ विशेष लिख रहा है .. ये हिंदुस्तान ऐसी मिटटी से बना हुआ है कि यहाँ नफरत का बीज पनपता नही है, अगर पनपता भी है तो बहुत दिन तक रह नही पाता... या तो वह सड़ जाता है या फिर गल जाता है. उसके ऊपर जमी भारत माता की परत यह बताती है कि यह जमीन केवल उन्ही बच्चो के लिए सरखेज है, उन्ही बीजो के लिए सरखेज है जो मोहब्बत का सायादार दरख्त फैला सके, जिसके निचे हिन्दू, मुस्लमान , सिख , ईसाई सभी आ सके.. इस दिन भगवान् श्री राम का आगमन हुआ है. 14 बरस के बाद अयोध्या के यशश्वी युवराज और भारतीयों के मन प्राण में बसने वाले राम घर लौटे है...आंगन खुश है, दीपको कि कतारे है, हर तरफ सुगंधें है..और यू मानिये कि हर आंख कौशल्या हो गई है...हर आंख स्वागत करना चाहती है अपने उस बेटे का जो एक वलकल पहनकर तपस्वी की तरह निकला और जिसने कुबेर के खजाने पर अपहरण करके कब्ज़ा करने वाले महापराक्रमी रावण को परास्त किया..और आखिर में प्रकाश जीतता है इस बात की अवधारणा को विश्व में सिद्ध किया क्योकि अंधकार कितना भी गहरा हो, सात समंदर पार हो जीत उजाले की होती है.. वही फिर एक विडम्बना है. रावणरूपी पाक, अयोध्यारूपी हिंदुस्तान को विवश कर रहा है... देश में जब हो रही दिवाली की तैयारी, हिंदुस्तान ने देखा दर्द. उरी के आंसू पोछने निकल पड़े हमदर्द. कुछ ने कहा ये है सियासत.. कुछ ने कहा महान...खामोश रही सेना इन सब पर बढ़ाया शहीदों का मान. न जश्न जीत का भाया, न जश्ने-ऐ-दिवाली समझ आया. भारतीय सेना को दिवाली से पहले दर्द-ऐ- उरी नज़र आया.... कहा- देश मेरे तुमको रोशन दिए मुबारक. पठानकोट,उरी के आंसू पोंछू, उनपर मेरा हक... उरी रो रहा है. अभी कैसे दिए जलाऊ, जब आंख में है आंसू तो मैं कैसे ख़ुशी मनाऊ... उफ्फ दहशतगर्दी का वो मंजर, सब कुछ तो तबाह हो गया था. बस जहां जिधर भी देखो बर्बादी का निशां बचा था ...राहत की कोशिश की, मुस्काने लाना बाकी है. अभी तो कश्मीर की वादियो का क़र्ज़ चुकाना बाकी है.. ये भी है एक चेहरा, देश की ऑंखें नम है..धमाके का नही यह तो उम्मीदों वाला बम है... सरहद के सन्नाटे को छलनी करता पाकिस्तान, जनता पर गोली बरसा जश्न मनाता पाकिस्तान...सेना ने फिर जवानों दे दी पलटवार की छूट.... थर थर कांपा दुश्मन, पाकिस्तान का गुरुर गया टूट... आज़ादी के बाद से नज़र गढ़ी कश्मीर पर. उरी से भारत में मातम था, पाकिस्तान था मस्त मगन....पाकिस्तान है आदत से लाचार सीमा पर फिर छल किया, जनता है बेजार.....सब्र का बांध जब टुटा तो सेना ने किया पलटवार.. जब बरसी गोलिया सरहद पर तब होश में आया पाक...पाक की नापाक चाल कभी न होती कम, पर अब सन्नाटा तोड़े कोई, यह है मुंहतोड़ जवाब का बम.... संदीप मीणा