हिंदी पौराणिक कथाओं के अनुसार माता दुर्गा की पूजा के बाद माता की आरती को नियमित रूप से करना माँ दुर्गा को खुश करने और आशीर्वाद पाने का सबसे उत्तम तरीका माना गया है. माता की आरती करने से मन को ख़ुशी मिलती और जीवन के सारे कष्ट दूर होते हैं साथ ही घर से सभी नकारात्म ऊर्जाएं बाहर हो जाती हैं. इस बार चैत्र नवरात्रि 18 मार्च से शुरू हो कर 25 मार्च तक चलेंगी. चैत्र नवरात्रियों के दौरान आदिशक्ति मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है चैत्र नवरात्रियों के दौरान घर में भ्रम महूर्त में स्नान करके समस्त परिजनों के साथ उपस्थित होकर माता की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष आरती करना सबसे ज्यादा फलदायी माना जाता है. आइये जाने मां दुर्गा की प्रमुख पावन आरतियां. मां दुर्गा की आरती जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति। तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥ मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को। उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥ कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै। रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥ केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥ कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती। कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥ शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती। धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥ चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू। बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥ भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी। मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥ कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती। श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥ श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै। कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥ जय आद्य शक्ति आरती जय आद्य शक्ति माँ जय आद्य शक्ति अखंड ब्रहमाण्ड दिपाव्या पनावे प्रगत्य माँ ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे द्वितीया मे स्वरूप शिवशक्ति जणु माँ शिवशक्ति जणु ब्रह्मा गणपती गाये ब्रह्मा गणपती गाये हर्दाई हर माँ ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे तृतीया त्रण स्वरूप त्रिभुवन माँ बैठा माँ त्रिभुवन माँ बैठा दया थकी कर्वेली दया थकी कर्वेली उतरवेनी माँ ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे चौथे चतुरा महालक्ष्मी माँ सचराचल व्याप्य माँ सचराचल व्याप्य चार भुजा चौ दिशा चार भुजा चौ दिशा प्रगत्य दक्षिण माँ ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे पंचमे पन्चरुशी पंचमी गुणसगणा माँ पंचमी गुणसगणा पंचतत्व त्या सोहिये पंचतत्व त्या सोहिये पंचेतत्वे माँ ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे षष्ठी तू नारायणी महिषासुर मार्यो माँ महिषासुर मार्यो नर नारी ने रुपे नर नारी ने रुपे व्याप्य सर्वे माँ ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे सप्तमी सप्त पाताळ संध्या सावित्री माँ संध्या सावित्री गऊ गंगा गायत्री गऊ गंगा गायत्री गौरी गीता माँ ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे अष्टमी अष्ट भुजा आई आनन्दा माँ आई आनन्दा सुरिनर मुनिवर जनमा सुरिनर मुनिवर जनमा देव दैत्यो माँ ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे नवमी नवकुळ नाग सेवे नवदुर्गा माँ सेवे नवदुर्गा नवरात्री ना पूजन शिवरात्रि ना अर्चन किधा हर ब्रह्मा ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे दशमी दश अवतार जय विजयादशमी माँ जय विजयादशमी रामे रावण मार्या रामे रावण मार्या रावण मार्यो माँ ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे एकादशी अगियार तत्य निकामा माँ तत्य निकामा कालदुर्गा कालिका कालदुर्गा कालिका शामा ने रामा ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे बारसे काला रूप बहुचरि अंबा माँ माँ बहुचरि अंबा माँ असुर भैरव सोहिये काळ भैरव सोहिये तारा छे तुज माँ ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे तेरसे तुलजा रूप तू तारुणिमाता माँ तू तारुणिमाता ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव गुण तारा गाता ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे शिवभक्ति नि आरती जे कोई गाये माँ जे कोई गाये बणे शिवानन्द स्वामी बणे शिवानन्द स्वामी सुख सम्पति ध्यसे हर कैलाशे जशे माँ अंबा दुःख हरशे ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे वैष्णों माता की आरती जय वैष्णवी माता , मैया जय वैष्णवी माता। द्वार तुम्हारे जो भी आता, बिन माँगे सबकुछ पा जाता॥ मैया जय वैष्णवी माता। तू चाहे जो कुछ भी कर दे, तू चाहे तो जीवन दे दे। राजा रंग बने तेरे चेले, चाहे पल में जीवन ले ले॥ मैया जय वैष्णवी माता। मौत-ज़िंदगी हाथ में तेरे मैया तू है लाटां वाली। निर्धन को धनवान बना दे मैया तू है शेरा वाली॥ मैया जय वैष्णवी माता। पापी हो या हो पुजारी, राजा हो या रंक भिखारी। मैया तू है जोता वाली, भवसागर से तारण हारी॥ मैया जय वैष्णवी माता। तू ने नाता जोड़ा सबसे, जिस-जिस ने जब तुझे पुकारा। शुद्ध हृदय से जिसने ध्याया, दिया तुमने सबको सहारा॥ मैया जय वैष्णवी माता। मैं मूरख अज्ञान अनारी, तू जगदम्बे सबको प्यारी। मन इच्छा सिद्ध करने वाली, अब है ब्रज मोहन की बारी॥ मैया जय वैष्णवी माता। सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी, तेरा पार न पाया। पान, सुपारी, ध्वजा, नारियल ले तेरी भेंट चढ़ाया॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी, तेरा पार न पाया। सुआ चोली तेरे अंग विराजे, केसर तिलक लगाया।। ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे, शंकर ध्यान लगाया। नंगे पांव पास तेरे अकबर सोने का छत्र चढ़ाया।। ऊंचे पर्वत बन्या शिवाली नीचे महल बनाया। सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी, तेरा पार न पाया।। सतयुग, द्वापर, त्रेता, मध्ये कलयुग राज बसाया। धूप दीप नैवेद्य, आरती, मोहन भोग लगाया।। ध्यानू भक्त मैया तेरा गुणभावे, मनवांछित फल पाया। सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी, तेरा पार न पाया।। चैत्र नवरात्रि 2018 : माँ को प्रसन्न करना है तो पूजा में कभी न करे ये गलतियां नवरात्री मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा जो शायद आप नहीं जानते होंगे चैत्र नवरात्रि 2018 : नवरात्रि का महत्व और खास चमत्कारी मंत्र