उज्जैन की पवित्रता को कायम रखने के लिये न केवल हमे स्वयं को बदलना होगा वहीं दूसरों को भी प्रेरित करने की जरूरत है, तभी पवित्र नगरी की परिकल्पना को साकार सिद्ध किया जा सकेगा। शहर में गंदगी फैलाने का काम हम ही करते है तो वहीं मंदिरों में भी गंदगी करने से चूकते नहीं है। यह बात भले ही चुभे, परंतु है बिल्कुल सत्य। महाकाल मंदिर में कतिपय पंडे पुजारी ही दीवारों पर पान तम्बाकू का गुटका या पाउच थूकने से बाज नहीं आते है, यह बात लिखने में गुरेज नहीं है। तो फिर बताईये ऐसी स्थिति में हम कैसे अपेक्षा कर सकते है कि उज्जैन की पवित्र आत्मा मैली नहीं होगी। सड़कों पर पाॅलीथिन फेंकना हमारी आदत में शुमार है, भले ही शिप्रा नदी के घाटों पर नहाते समय साबून लगाने पर प्रतिबंध है, बावजूद इसके हम साबून लगाते है और गंदा पानी शिप्रा में मिलता है। पूजन सामग्री प्रवाहित करने के लिये शिप्रा तट पर स्थान निर्धारित है, बावजूद इसके पूजन सामग्री शिप्रा में चाहे-जहां प्रवाहित कर दी जाती है। क्या हम नागरिकों का दायित्व इस उज्जैन को पवित्र रखने का नहीं है, इस बात पर गहन विचार मंथन की आवश्यकता है। खुद भी बदलों और दूसरों को भी बदलने के लिये प्रेरणा दी जाये तो परिणाम भले ही धीरे-धीरे, परंतु सार्थक रूप में जरूर सामने आयेगा, ऐसा विश्वास है। महाकाल मन्दिर की दानपेटी से 11 लाख की दानराशि प्राप्त एमआईसी न्यूज़ : बजट में गलतियों का अंबार देखकर महापौर बिफरी