सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। प्रत्येक वर्ष कुल 24 एकादशी तिथियां आती हैं। हिंदू पंचांग के मुताबिक, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इसे डोल ग्यारस एवं जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है। परिवर्तिनी एकादशी व्रत इस वर्ष भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 25 सितंबर सोमवार को प्रातः 07:55 से प्रारंभ होगी और 26 सितंबर, मंगलवार को प्रातः 5 बजे समापन होगा। ऐसे में 25 सितंबर को गृहस्थ वाले व्रत रखेंगे तथा 26 सितंबर को वैष्णव एकादशी व्रत रखेंगे। इस तिथि पर प्रभु श्री कृष्ण के बाल स्वरूप बाल-गोपाल को एक डोल में विराजित कर शोभा यात्रा निकाली जाती है। इसलिए इसे डोल ग्यारस कहा जाता है। कृष्ण जन्म के अठारहवें दिन माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया था। इसी दिन को डोल ग्यारस के तौर पर मनाया जाता है। जलवा पूजन के पश्चात् ही संस्कारों की शुरुआत होती है। इस दिन प्रभु श्रीकृष्ण को डोल में बिठाकर कई प्रकार की झांकी के साथ बड़े ही हर्षोल्लास के साथ जुलूस निकाले जाते हैं। इस दिन भगवान राधा-कृष्ण के नयनाभिराम विद्युत सज्जित डोल निकाले जाते हैं। डोल ग्यारस पर मान्यता है कि इस दिन प्रभु श्री विष्णु करवट बदलते हैं। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस तिथि पर प्रभु श्री विष्णु एवं उनके आठवें अवतार प्रभु श्रीकृष्ण के पूजन का विधान है। वही इस दिन कुछ विशेष मंत्रों के जाप से भगवान श्री कृष्ण जल्दी प्रसन्न होते है. मंत्र:- 1. प्रभु श्री विष्णु के पंचाक्षर मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का तुलसी की माला से कम से 108 बार या अधिक से अधिक जाप करें। 2. 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री'। 3. 'कृं कृष्णाय नमः' मंत्रों का 108 बार जाप करना चाहिए। आज रात कर लें ये उपाय, घर में कभी नहीं होगी धन की कमी गणेश उत्सव के दौरान जरूर करें श्री गणेश चालीसा का पाठ, मिलेगा भारी फायदा लक्ष्मी और महालक्ष्मी के बीच क्या अंतर है? यहाँ जानिए रहस्य