नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय उस जनहित याचिका पर आदेश देने से मना कर दिया है, जिसमें पुलिस, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) जैसी जांच एजेंसियों को मामलों में दाखिल आरोपपत्र सार्वजनिक करने के लिए वेबसाइट पर उपलब्ध कराने की मांग की गई थी. न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार ने फैसले में कहा कि अगर चार्जशीट उन लोगों को दी जाती है, जो मामले से संबंधित नहीं हैं, गैर सरकारी संगठन हैं तो उनका दुरुपयोग हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, आरोपपत्र हर किसी को नहीं दी जा सकती. FIR मुहैया कराई जाती है, जिसके लिए कोर्ट ने अपने एक फैसले में आदेश दिया था. मुद्दे का जिक्र गत वर्ष के PMLA फैसले में किया गया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट की 3 न्यायाधीशों की बेंच ने पारित किया था. उसमें साफ किया गया था कि सार्वजनिक करने के दुष्प्रभाव हो सकते हैं. शीर्ष अदालत ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण के जरिए दाखिल पत्रकार और कार्यकर्ता सौरव दास की याचिका पर यह फैसला दिया है. फैसले में कोर्ट ने कहा है कि ED की चार्जशीट को सार्वजनिक किए जाने के मुद्दे का जिक्र गत वर्ष के PMLA फैसले में किया गया है, जिसे शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की बेंच ने पारित किया था. उसमें साफ किया गया था कि सार्वजनिक करने के दुष्प्रभाव हो सकते हैं. WFI विवाद: प्रेस वार्ता करने जा रहे बृजभूषण, खेल मंत्री की सलाह- मीडिया में बयानबाज़ी से बचें दिल्ली में शीतलहर ने तोड़ा 11 साल का रिकॉर्ड, जनवरी में जमकर ठिठुरी राजधानी 'LG होता कौन है?..', केजरीवाल के सवाल पर उपराज्यपाल ने दिया करारा जवाब