आखिर छठ पर क्यों दिया जाता है गंगा नदी में अध्र्य

नईदिल्ली। दीपावली के बाद आने वाली छठ पर मनाया जाने वाला सूर्योपासना पर्व छठ मंगलवार से प्रारंभ होगा। इस तीन दिवसीय पर्व में महिलाऐं प्रमुखरूप से अस्ताचल सूर्य को अध्र्य प्रदान करती हैं और अगले दिन सुबह पूजन के साथ छठ का महापर्व समाप्त होता है। महिलाऐं परिवार की सुख - समृद्धि और अपनी मनोकामना को लेकर छठ का व्रत करती हैं। इस अवसर पर पवित्र सरोवरों, तीर्थों, जल स्त्रोतों व नदियों में महिलाऐं आधे पानी में खड़े होकर अध्र्य प्रदान करती हैं।

शाम के समय अस्ताचल सूर्य को अध्र्य प्रदान किया जाता है। पर्व का समापन सुबह के समय सूर्य को अध्र्य देने और पूजन करने के साथ होता है। यह बेहद वैज्ञानिक मान्यताओं पर आधारित पर्व है। इस पर्व में उत्तरभारत में निवास करने वाले अनुयायी और श्रद्धालु वहां की प्रमुख नदी गंगा के घाटों पर पहुंचकर पूजन करते हैं। हालांकि इस बार गंगा नदी का जल स्तर बिहार समेत अन्य कई क्षेत्रों में अधिक है। ऐसे में कई ऐसे घाट हैं जिन पर पूजन नहीं किया जाएगा।

अन्य घाटों पर श्रद्धालुओं के लिए आवश्यक प्रबंध किए जा रहे हैं। गंगा नदी में सूर्य को अध्र्य देने और पूजन करने का अपना धार्मिक महत्व है। चूंकि गंगा नदी गंगोत्री से निकलकर हिमालय क्षेत्र से होते हुए गंगा के मैदानी भागों में पहुंचती है। ऐसे में यह उत्तर भारत के कई क्षेत्रों को छूती है। जिसके कारण लोग इस पवित्र नदी में अध्र्य देकर अपने पूजन को सफल मानते हैं।

गंगा नदी हिंदूमान्यताओं में पवित्र नदी है। मान्यताओं के अनुसार वे लोग जो गंगा नदी के स्थलों से बेहद दूर निवास करते हैं वे अपने घरों में पवित्र गंगा जल भरकर रखते हैं और पूजन के दौरान इसका उपयोग करते हैं। कई स्थानों को पवित्र करने के उद्देश्य से गंगा जल छिड़का जाता है। इसे बेहद पवित्र जल माना जाता है। इसके आचमन मात्र से ही सभी दोष और पाप स्वतः समाप्त हो जाते हैं। इस तरह की धार्मिक और पौराणिक आख्यानों से युक्त नदी में छठ पूजन का सूर्य अध्र्य प्रदान करना बेहद पुण्यदायी माना जाता है।

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