बॉर्डर से पीछे हटने को माना चीन, पर ओवैसी के दिल में अलग ही सीन!

हैदराबाद: ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में पेट्रोलिंग पॉइंट्स को लेकर एक समझौता हुआ, जिसमे चीन ने अपनी सेना को बॉर्डर से पीछे हटाने पर सहमति जताई है। इसे भारत की बाई कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। वहीं, इस मुलाकात पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने तीखे सवाल उठाए हैं। ओवैसी ने प्रधानमंत्री मोदी पर गलवान झड़प के बाद देश को गुमराह करने का आरोप लगाया और समझौते की पारदर्शिता पर सवाल उठाया।

ओवैसी ने एक इंटरव्यू में कहा कि जब 2020 में गलवान की घटना हुई थी, तब उन्होंने (ओवैसी ने) कहा था कि चीन ने भारतीय जमीन पर कब्जा कर रखा है। अब समझौता यह साबित करता है कि उस समय देश को सच्चाई नहीं बताई गई थी। उन्होंने मांग की कि इस समझौते को संसद में पेश किया जाए ताकि उसकी असलियत सबके सामने आ सके। उन्होंने पूर्वी लद्दाख के पेट्रोलिंग पॉइंट्स पर अक्टूबर से शुरू होने वाली बर्फबारी का जिक्र करते हुए पूछा कि क्या अब सेना उन पेट्रोलिंग पॉइंट्स पर दोबारा गश्त कर सकेगी, जहाँ पहले नहीं कर पा रही थी।

ओवैसी ने डोकलाम का मुद्दा उठाते हुए दावा किया कि सरकार ने भले ही कहा हो कि चीन वहाँ से हट गया है, लेकिन असल में चीन अभी भी डोकलाम में मौजूद है। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि जो जगहें पहले भारतीय सेना की पेट्रोलिंग के अधीन थीं, क्या अब भी वहां हमारी सेना पेट्रोलिंग कर पाएगी? उन्होंने बफर जोन बनाने की अवधारणा पर सवाल उठाते हुए कहा कि चीन को हमारी जमीन पर बफर जोन बनाने का अधिकार क्यों दिया गया है? ओवैसी ने चेतावनी दी कि वे शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे को संसद में उठाकर सरकार से जवाब मांगेंगे कि आखिरकार चार साल से देश को गुमराह क्यों किया जा रहा है, और 20 दौर की बातचीत के बाद भी क्या कोई ठोस नतीजा निकला है?

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