बीजिंग: पीएम नरेंद्र मोदी अपने पांच सालों के कार्यकाल में चीन के साथ एक दूरी बनाकर उसे भारत के करीब लाने का प्रयास करते रहे. चीनी निवेश को लुभाने के लिए जहां वह एक ओर बार-बार चीन का दौरा करते रहे, वहीं दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया, जापान और यूएस से सुरक्षा सम्बन्धी बातचीत भी करते रहे. अखबार निक्की एशियन रिव्यू ने लिखा है कि, एग्जिट पोल में पीएम मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) चुनाव में जीत की तरफ आगे बढ़ती दिखाई दे रही है, ऐसे में एक बात निश्चित है कि भारत चीन के साथ रिश्तों में पुरानी गर्मजोशी बनाए रखने का प्रयास करेगा.17 अप्रैल को गुजरात की एक चुनावी रैली में पीएम मोदी ने खुद को भारतीय सैनिकों की सुरक्षा करने वाले एक सशक्त नेता के तौर पर पेश किया था. उन्होंने फरवरी माह में हुए पुलवामा आतंकी हमले का उल्लेख करते हुए पाकिस्तान को निशाने पर लिया. उन्होंने अपनी चुनावी रैलियों में मार्च महीने में अंतरिक्ष में मिसाइल से सैटेलाइट मार गिराने की सफलता का भी उल्लेख किया था. 2017 में लगभग 50 वर्षों बाद भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच एक महीने तक घोर तनाव की स्थिति रही. डोकलाम विवाद के बाद मोदी प्रशासन ऑस्ट्रेलिया, जापान और यूएस के पास जाने को विवश हुआ. चारों देशों ने चीन की सैन्य शक्ति से निपटने के लिए सुरक्षा वार्ता में भी भाग लिया. हालांकि, डोकलाम के बाद से भारत-चीन के मध्य कोई गंभीर टकराव देखने को नहीं मिला. वर्ल्ड कप 2019: जिस सवाल से टीम इंडिया है परेशान, धोनी हो सकते हैं उसका सटीक समाधान चीन के साथ बढ़ा तनाव, अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में उतारे जंगी जहाज इस दिग्गज बल्लेबाज ने हार्दिक को बताया तुरूप का इक्का