सीमा पर विवाद के बाद चीन के खिलाफ देश में बहुत आक्रोश है. जनता ने चीनी सामानों का त्यागने का फैसला किया है. दोनो देशों के बीच राजनीतिक जंग छिड़ी चुकी है, और चीन के साथ व्यापार घाटे व मोर्चे पर चीन से साथ भिड़ंत के लिए एक दूसरे की नीतियों पर सवाल भी खड़े किए जा रहे हैं. सच्चाई यह है कि पिछले डेढ़ दो दशक में व्यापार से जुड़ी दूरगामी नीति के अभाव, मैन्यूफैक्चरिंग के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाओं की कमी, टैरिफ पॉलिसी का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) से लिंक नहीं होना, लालफीताशाही का हावी रहना, करेंसी में मजबूती और सबसे अहम बात कि चीन के साथ सामरिक स्थिरता कायम रखने के लिए व्यापारिक स्तर पर नरम रहने जैसे मुद्दों के कारण वर्ष 2005-06 से लेकर वर्ष 2013-14 के दौरान चीन से होने वाले आयात में पांच गुनी बढ़ोतरी दर्ज की गई. सप्ताह के अंतिम दिन बढ़त के साथ बंद हुआ शेयर बाजार, जानें पूरी डिटेल्स आपकी जानकारी के लिए बता दे कि चीन को होने वाले निर्यात में इन 8 सालों में सिर्फ 22 फीसद का इजाफा हो सका. 2005-06 का 10.8 अरब डॉलर का आयात 2013-14 में 51 अरब डॉलर का हो गया. लेकिन इस अवधि में निर्यात 6.7 अरब डॉलर से बढ़कर सिर्फ 11.9 अरब डॉलर तक पहुंच सका. अर्थव्यवस्था पर कोरोना की मार, नई कंपनियों के पंजीकरण में आई भारी गिरावट अगर आपको नही पता तो बता दे कि देश की दवा बनाने वाली कंपनियां पिछले दिनों को याद करती हुई कहती हैं- काश, 15 साल पहले हमें फरमेंटेशन के लिए पर्याप्त बिजली मिल गई होती तो आज हमें यह दिन न देखना होता. फरमेंटेशन के लिए एक निश्चित तापमान को लंबे समय तक एक समान रखने की जरूरत होती है. जेनरेटर के भरोसे यह संभव नहीं था. नतीजा यह हुआ कि पिछले 15 सालों में भारत बल्क दवा के लिए 90 फीसद तक चीन पर निर्भर होता गया. PPF के माध्यम से निवेशक उठा सकते है जबरदस्त लाभ इन बैंकों के सेविंग अकाउंट में मिलेगा सबसे अधिक ब्याज चीन को भारत ने दिया एक और झटका, बिजली मंत्री ने पहुचाई जबदस्त हानि