अबुधाबी: सऊदी अरब मध्यपूर्व का एक ऐसा देश है जिसे धार्मिक रूप से दुनिया का सबसे कट्टर मुल्क माना जाता है। हालांकि, अब समय बदल रहा है और सऊदी अरब भी इस विचार को अपना रहा है। इजरायल, यहूदी और ईसाई लोगों के प्रति सऊदी अरब की नफरत को छिपाने की कोशिश अब दिखाई नहीं दे रही है। ऐसा लग रहा है कि मुल्क में नफरत की दीवारें ध्वस्त हो रही हैं और एक नई पटकथा की शुरुआत हो रही है। यह बदलाव मुल्क के बच्चों को पढ़ाई की पुस्तकों से हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, इस खाड़ी देश के स्कूलों में पढ़ाई की जाने वाली किताबों में परिवर्तन हो रहा है। यह परिवर्तन कुछ महीनों से नहीं, बल्कि सालों से चल रहा है। पहले जिन किताबों में इजरायल और यहूदियों को आलोचित किया जाता था, उनके खिलाफ नफरत का बीज बोया जाता था। हालांकि, अब यहूदियों और ईसाइयों को इस्लाम के शत्रु के रूप में बताने वाली किताबों की भाषा बदल चुकी है। इजरायल से लेकर ईसाइयों तक के लिए इन किताबों में कोमलता बरताई जा रही है। इस परिस्थिति में सवाल उठता है कि क्या सऊदी अरब का 'ईमान' परिवर्तित हो रहा है? सऊदी अरब अपने आप को बदल रहा है: अगर हम इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करें, तो हमें हाँ का उत्तर ही मिलेगा। सऊदी अरब यह जान चुका है कि यदि उसे तरक्की के नए संकेत देने हैं, तो वह अपने कट्टर और पारंपरिक विचारों का त्याग करना होगा। सऊदी अरब ने अपने पड़ोसी संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में हुए विकास को देखा है, जहां हर मजहब के लोग साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इसीलिए यह खाड़ी का देश अब अपने को बदलने और सहानुभूति के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। किताबों में क्या बदलाव किए गए? इजरायल और लंदन में स्थित 'इंस्टीट्यूट फॉर मॉनिटरिंग पीस एंड कल्चरल टोलरेंस इन स्कूल एजुकेशन' (IMPACT-se) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सऊदी अरब की स्कूली किताबों में लैंगिक भूमिकाओं से लेकर शांति और सहिष्णुता को बढ़ावा देने वाले अध्यायों की संख्या बढ़ रही है। यहूदियों, ईसाइयों और इजरायल-फिलिस्तीन विवाद से जुड़े अध्यायों में भी बदलाव किया गया है, जिससे सभी का ध्यान इस दिशा में खींचा गया है। रिपोर्ट के अनुसार, हाल ही में सऊदी अरब के एक स्कूली किताब से कुछ लाइनें हटाई गईं हैं, जिसमें एक लाइन है, कि 'यहूदी और ईसाई, इस्लाम के शत्रु हैं।' वहीं, इजरायल और फिलीस्तीन के बीच जारी विवाद को लेकर भी इजरायल के खिलाफ अभी तक पढ़ाई जा रहे कई अध्यायों को हटा दिया गया है, जिनमें से 'इजरायली दुश्मन', 'इजरायल के कब्जे वाली सेना', 'दुश्मन यहूदी', 'इजरायली कब्जे वाले फिलीस्तीनी क्षेत्र' जैसे अध्याय शामिल हैं। इसके अलावा भी फिलीस्तीन पर कई इजरायली हमलों के संबंध में लिखी बातों को पुस्तक से हटा लिया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि हाल के सालों में जिन किताबों में यहूदियों और ईसाइयों की छवि खलनायक के रूप में गढ़ी गई थी, वे अब बदल रही हैं। उन सभी उदाहरणों को किताबों से बाहर का रास्ता दिखाया गया है, जिनमें यहूदियों और ईसाइयों को इस्लाम का दुश्मन बताया गया था। तोराह और गॉस्पेल (जिन्हें अरबी में तौरात और इंजील कहा जाता है) में बदलाव के लिए यहूदियों और ईसाइयों की आलोचना वाले अध्यायों भी हटा दिए गए हैं। एक किताब में फिलिस्तीन मुद्दे से जुड़ा पूरा एक अध्याय ही हटा दिया गया है। जिन किताबों में पहले इंतिफादा के फायदे बताए गए थे, उन्हें भी अब हटा दिया गया है। हालांकि, कुछ अंश अभी भी बरकरार हैं, जिन्हें वहीं रखा गया है। जैसे कि अभी भी इजरायल के मानचित्र को विवादास्पद बताया गया है और किताबों में होलोकॉस्ट का उल्लेख तक नहीं किया गया है। IMPACT-se के अनुसार, सऊदी अरब के नये सिलेबस में कई आतंकी संगठनों की तीखी आलोचना की गई है, जिनमें हिजबुल्ला, इस्लामिक स्टेट (ISIS), अल कायदा, हौथी मिलिशिया और मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे संगठनों की कड़ी आलोचना की गई है। बता दें कि, इससे पहले वर्ष 2021 में सऊदी अरब सरकार ने नया पाठ्यक्रम जारी किया था, जिसमें रामायण और महाभारत के साथ हिंदू धर्म और हिन्दू सभ्यता को स्कूली पुस्तकों में शामिल किया गया था। स्वीडन: अब 50 वर्षीय महिला ने मांगी 'कुरान' जलाने की इजाजत, तौरात-बाइबिल के लिए भी पुलिस को मिले आवेदन जिन आतंकियों को पाला, अब उनकी ही मार झेल रहा पाकिस्तान, 6 महीने में 271 हमले, 389 लोगों की मौत 'हम एक भी मुस्लिम को शरण नहीं देंगे..', फ्रांस में दंगों के बीच पोलैंड के सांसद का Video वायरल