कांग्रेस ने 'भगवा आतंकवाद' बोलने के लिए कहा..! मनमोहन सरकार के गृहमंत्री शिंदे का कबूलनामा

नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में 2010 के बाद से एक शब्द तेजी से सुर्खियों में आया, "भगवा आतंकवाद"। इस शब्द ने देश की राजनीति का रुख बदल दिया और एक लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी के लिए भारी विरोध और असंतोष का कारण बना। बलिदान और त्याग का प्रतीक समझा जाने वाला भगवा रंग, जो भारतीय परंपरा और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, उसे आतंकवाद के साथ जोड़कर पेश करना एक बड़ी भूल साबित हुई। कांग्रेस के इस कदम से न केवल पार्टी की छवि को नुकसान हुआ, बल्कि इसका राजनीतिक प्रभाव भी दूरगामी रहा। 

कांग्रेस के नेता और तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने सबसे पहले 2010 में इस शब्द का इस्तेमाल किया था। 25 अगस्त 2010 को डीजीपी और आईजी के वार्षिक सम्मेलन में उन्होंने कहा, "हाल के समय में भगवा आतंकवाद उभर कर आया है, जो कई बम विस्फोटों में पाया गया है।” उनके इस बयान ने देश की राजनीति में एक नए विवाद को जन्म दिया। 

2013 में, कांग्रेस की यूपीए-2 सरकार में तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कांग्रेस के जयपुर चिंतन शिविर में इसी तरह का बयान दिया। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कैंपों में हिंदू आतंकवादियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बाद में, सुशील कुमार शिंदे ने स्वीकार किया कि यह बयान कांग्रेस पार्टी की ओर से दिया गया था और उन्हें इसे नहीं कहना चाहिए था। शिंदे का यह स्वीकारोक्ति इस बात का संकेत था कि पार्टी ने गलत राजनीतिक रणनीति अपनाई थी। 

"भगवा आतंकवाद" का मुद्दा कांग्रेस के लिए एक बड़ी राजनीतिक भूल साबित हुआ। 2014 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की भारी जीत और नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना इस मुद्दे का प्रमुख कारण बना। भगवा रंग भारतीय जनता के लिए गर्व और समर्पण का प्रतीक है, और इस रंग को आतंकवाद से जोड़ना कांग्रेस के लिए आत्मघाती सिद्ध हुआ। 

सवाल यह उठता है कि जो कांग्रेस हमेशा से यह कहती आई कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, उसने भगवा रंग को आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश क्यों की? इससे यह संदेश गया कि कांग्रेस हिंदू धर्म और उसकी पहचान के खिलाफ काम कर रही है। यह भी सवाल खड़ा होता है कि कांग्रेस को देश की बहुसंख्यक आबादी से इतनी नफरत क्यों थी? इसी तरह कांग्रेस ने 26/11 मुंबई हमले को भी भगवा आतंकवाद बताने का प्रयास किया था, जबकि 10 आतंकियों में से एकमात्र जिन्दा पकड़े गए अजमल कसाब ने माना था कि उसे पाकिस्तान से जिहाद करने भेजा गया था, मगर जांच के पहले ही दिग्विजय सिंह और महेश भट्ट 26/11 RSS की साजिश नाम से किताब लॉन्च करने पहुँच गए थे। इससे तो यही साबित होता है कि, कांग्रेस अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए बहुसंख्यकों को आतंकी बताना चाहती थी, चाहे फिर फर्जी कहानी ही क्यों ना गढ़नी पड़े? और इसकी आड़ में असली जिहाद/आतंकवाद को छुपाया जा सके।

इस शब्द का सबसे पहले उपयोग कांग्रेस से सहानुभूति रखने वाले अंग्रेजी पत्रकार प्रवीण स्वामी ने किया था। 2002 के गुजरात दंगों के समय, स्वामी ने ‘Saffron Terror’ नामक एक रिपोर्ट लिखी थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि हिंदू चरमपंथियों ने मुस्लिम समुदाय पर अत्याचार किए थे। उनकी इस रिपोर्ट को कांग्रेस ने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द को प्रचारित किया। जबकि, गोधरा कांड में 59 हिन्दुओं को जिन्दा जलाकर मार डालना किसी को नहीं दिखा, कश्मीर में गिरिजा टिक्कू का गैंगरेप करके उन्हें जिन्दा रहते आरी से दो भागों में चीर दिया गया, तब भी आतंकवाद का कोई धर्म नहीं था। मजहबी नारे लगाकर लाखों कश्मीरी हिन्दुओं का पलायन हुआ, उसमे भी आतंकवाद नहीं था ? जब जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट 2022 में एक मारे गए आतंकी के जनाज़े में लोगों को नमाज़ पढ़ने की इजाजत देता है, फिर भी आतंकवाद का मजहब नहीं पता चलता ? आतंकवाद सिर्फ तब होता है, जब तमाम चीज़ें सहने के बाद भारत का बहुसंख्यक समुदाय एक बार प्रतिकार कर दे। 

कांग्रेस शायद यही नैरेटिव स्थापित करना चाहती थी, और इसमें साथ दिया उसके करीबी मीडिया ने। प्रवीण स्वामी की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया था कि विश्व हिंदू परिषद (VHP) के नेता प्रवीण तोगड़िया भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। रिपोर्ट में कई आरोप लगाए गए, जिनका उद्देश्य था कि हिंदू संगठनों को उग्रवादी के रूप में पेश किया जाए। 

कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के तहत ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द का प्रचार किया। पार्टी की यह सोच थी कि इससे अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधा जा सकेगा। यूपीए सरकार के समय में कांग्रेस के बड़े नेता जनार्दन द्विवेदी, सीपी जोशी, मणिशंकर अय्यर, और अहमद पटेल जैसे नेता सोनिया गांधी के करीब थे। यह माना जाता था कि सोनिया गांधी की सलाह के बिना कोई बड़ा निर्णय नहीं लिया जाता था। 

इस समय, कई विवादास्पद बयान दिए गए, जैसे कि "संसाधनों पर पहला अधिकार मुस्लिमों का है" और PCTV बिल, जिसे पढ़कर किसी भी भारतीय की रूह काँप जाए। इन बयानों और नीतियों से जनता के बीच यह धारणा बनी कि कांग्रेस अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है। इससे बहुसंख्यक समुदाय में कांग्रेस के प्रति असंतोष बढ़ा।  भगवा आतंकवाद शब्द का दुष्परिणाम कांग्रेस को चुनावी नतीजों में भुगतना पड़ा। 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस को भारी हार का सामना करना पड़ा और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में आई। 2019 और 2024 में भी भाजपा ने अपनी जीत को दोहराया। कांग्रेस का यह कदम उसकी राजनीतिक अस्तित्व के लिए घातक साबित हुआ। 

भगवा आतंकवाद को स्थापित करने के लिए कांग्रेस ने मालेगांव धमाका, समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट, मक्का मस्जिद ब्लास्ट आदि में हिंदू संगठनों और व्यक्तियों को आरोपी बनाया। महाराष्ट्र ATS ने मालेगांव धमाके में साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित और स्वामी असीमानंद को गिरफ्तार किया। इन आरोपियों को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी गई। 

कर्नल पुरोहित ने कहा कि उन्हें नंगा करके पीटा गया और धमाकों के लिए अन्य हिंदू नेताओं का नाम लेने के लिए मजबूर किया गया। साध्वी प्रज्ञा को इतनी बुरी तरह प्रताड़ित किया गया कि उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोटें आईं। अंततः, अदालत ने अधिकांश आरोपियों को बरी कर दिया और इन सभी मामलों में कांग्रेस के नैरेटिव को ध्वस्त कर दिया।

कांग्रेस के इस रणनीतिक गलती का परिणाम यह हुआ कि भाजपा ने इसका फायदा उठाया और बहुसंख्यक समुदाय का विश्वास जीता। नरेंद्र मोदी की सरकार ने आतंकवाद के मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाया और देश की सुरक्षा को प्राथमिकता दी। सवाल यह है कि कांग्रेस किस उद्देश्य से फर्जी भगवा आतंकवाद की कहानी गढ़ रही थी? क्या कांग्रेस ने यह नैरेटिव इसलिए गढ़ा ताकि अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पक्ष में कर सके? 

भगवा आतंकवाद शब्द को इस्तेमाल करने का कदम कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हुआ। पार्टी ने तुष्टीकरण की नीति अपनाई, जिससे बहुसंख्यक समुदाय में नाराजगी बढ़ी। कांग्रेस को यह समझना चाहिए था कि भगवा केवल एक रंग नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है। सुशील कुमार शिंदे ने अब स्वीकार किया है कि ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द का उपयोग नहीं करना चाहिए था, लेकिन कांग्रेस द्वारा उन्हें ऐसा करने के लिए कहा गया था। उनका बयान इस बात का स्पष्ट संकेत है कि कांग्रेस की यह रणनीति गलत थी और इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। कांग्रेस ने अपनी असली पहचान और राजनीति की दिशा को खो दिया। 

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