शिमला: हिमाचल प्रदेश के मंत्री विक्रमादित्य सिंह को हाल ही में दिल्ली बुलाया गया, जहाँ कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने उनके विभाग द्वारा जारी एक विवादास्पद आदेश पर कड़ी फटकार लगाई। इस आदेश में राज्य भर की खाद्य दुकानों पर उनके मालिकों का नाम और पता प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया था। यह विवाद तब सामने आया जब कांग्रेस सोशल मीडिया और पार्टी के भीतर आलोचनाओं का सामना कर रही थी। कुछ सप्ताह पहले, कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इसी तरह का कदम उठाया गया था, जिसका कांग्रेस ने विरोध किया था। सूत्रों के अनुसार, विक्रमादित्य सिंह को इस मुद्दे पर विवादित बयान देने से रोका गया है, और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इस फैसले से नाखुश हैं। छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव ने भी इस आदेश की आलोचना की, इसे भेदभावपूर्ण और निंदनीय कदम करार दिया। उनका तर्क था कि दुकान के मालिक का नाम प्रदर्शित करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ग्राहक ब्रांड खरीदता है, व्यक्ति नहीं। हालाँकि, खाद्य पदार्थों की दुकानों पर बिकने वाले जलेबी-समोसे पर कौन सा ब्रांड लिखा होता है, ये कांग्रेस नेता ही जानें। वो तो हलवाई खुद बनाता है, लेकिन देशभर में सबकी जाति पूछने वाली कांग्रेस के अनुसार ग्राहक द्वारा हलवाई उसका नाम जानना भी भेदभाव हो जाएगा / बहरहाल, इस विवाद ने कांग्रेस को सोशल मीडिया पर भी कटघरे में खड़ा कर दिया, जहाँ लोगों ने पार्टी को पाखंडी कहा। जुलाई में जब उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर भोजनालयों के लिए ऐसा ही निर्देश जारी किया था, तो कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इसे "राज्य प्रायोजित कट्टरता" करार दिया था। AIDUF के विधायक रफीकुल इस्लाम ने भी इस पर टिप्पणी की, यह कहते हुए कि कांग्रेस अब भाजपा के नक्शेकदम पर चल रही है और दोनों पार्टियों के बीच कोई अंतर नहीं रह गया है। उन्होंने इसे हिंदू-मुस्लिम झगड़े भड़काने की रणनीति बताया और कांग्रेस पर भाजपा का "यूपी मॉडल" अपनाने का आरोप लगाया। हालाँकि, पहले से ही इस बात की अटकलें लगाई जा रही थीं कि कांग्रेस हाईकमान, विशेषकर गांधी परिवार, इस तरह के आदेश के खिलाफ खड़ा होगा, क्योंकि पार्टी पहले भी ऐसे कदमों का विरोध करती आई है। परंतु, इस स्थिति में सवाल यह उठता है कि क्या आम जनता को यह जानने का हक नहीं है कि वे किसकी दुकान से सामान खरीद रहे हैं या किस रेस्टोरेंट से भोजन कर रहे हैं? यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह के आम नागरिकों के सामान्य अधिकारों को कुछ लोग धार्मिक दृष्टिकोण से देखते हैं, जिससे समाज में बेवजह की धार्मिक ध्रुवीकरण पैदा होती है। जब एक मुस्लिम व्यक्ति, खरीदारी करता है, तो हलाल सर्टिफिकेट देखकर ही खरीदता है और हलाल सर्टिफिकेट उसी उत्पाद को मिलता है, जिसे मुस्लिम द्वारा तैयार किया गया हो। तो क्या वो मुस्लिम ग्राहक भेदभाव करता है ? ये उसकी पसंद और उसका फैसला है, लेकिन यही बात दूसरे समुदायों पर लागू नहीं होती, वहां कांग्रेस की नज़र में पक्षपात हो जाता है। 'अब्बासी' लड़के ने 'अंसारी' लड़की से किया निकाह, फिर जो हुआ वो रूह कंपा देगा... माथे पर टीका, नाम मुबीन अहमद, ग्राहकों को चुपके से परोस देता था मांस और.. प्रयागराज के मंदिरों में बैन हुआ प्रसाद, अब इन चीजों से लगेगा भगवान को भोग