'टिकट बेच रही कांग्रेस..', चुनाव से पहले हुड्डा के करीबी जय तीरथ दहिया का इस्तीफा

चंडीगढ़: हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है, जब पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक जय तीरथ दहिया ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। दहिया ने न सिर्फ इस्तीफा दिया, बल्कि पार्टी पर गंभीर आरोप भी लगाए हैं, जिनमें टिकट देने में पैसे लेने की बात प्रमुख है। जय तीरथ दहिया ने पार्टी पर टिकट बेचने के आरोप लगाए और कहा कि उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार होते हुए भी नजरअंदाज कर अपमानित किया गया है।

उन्होंने कहा, "मैंने पार्टी को अपनी सेवा दी है, और फिर भी इस तरह से मेरा अपमान हुआ। यही वजह है कि मैंने अपना इस्तीफा सौंपा है।" दहिया का यह बयान इस बात को रेखांकित करता है कि कांग्रेस के भीतर टिकट वितरण को लेकर असंतोष बढ़ रहा है, जो पार्टी के लिए एक गंभीर समस्या बन सकता है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वे पहले भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थन के कारण विधायक बने थे, लेकिन इस बार पार्टी के आंतरिक मसलों ने उन्हें हाशिये पर डाल दिया। जय तीरथ ने अपने इस्तीफे के साथ ही कांग्रेस नेतृत्व को चेतावनी दी है कि टिकट वितरण में हुई इस तरह की धांधली से पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचेगा, जो पहले से ही कई चुनौतियों का सामना कर रही है।

कांग्रेस पर टिकट बेचने के आरोप लगना कोई नई बात नहीं है, लेकिन यह जरूर चिंताजनक है कि ये आरोप पार्टी के उन वरिष्ठ नेताओं की ओर से आ रहे हैं, जिन्होंने वर्षों तक पार्टी के लिए काम किया है। जय तीरथ दहिया जैसे नेता का पार्टी से इस तरह से अलग होना, वो भी उस समय जब पार्टी को अपने वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की सख्त जरूरत है, कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।

कांग्रेस की गिरती साख: देश की सबसे पुरानी पार्टी पर सवाल

कांग्रेस, जो कभी देश की सबसे ताकतवर राजनीतिक पार्टी थी और जिसने दशकों तक भारत की सत्ता संभाली, अब लगातार अपनी साख खोती जा रही है। देश ने तीन बार कांग्रेस को केंद्र की सत्ता में आने से रोका है, और अब पार्टी केवल तीन राज्यों में सत्ता में बची है। वहां भी हालात ठीक नहीं हैं। ऐसे में जय तीरथ दहिया का इस्तीफा और पार्टी पर टिकट बेचने के आरोप, कांग्रेस की पहले से गिरती प्रतिष्ठा को और कमजोर कर सकते हैं।

पार्टी पहले ही जनता के विश्वास की कमी से जूझ रही है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का जनाधार सिकुड़ता जा रहा है और हाल के वर्षों में पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस से अलग होकर दूसरी पार्टियों में शामिल होने का रास्ता चुना है। इससे पार्टी में नेतृत्व के स्तर पर अस्थिरता पैदा हुई है और कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी बुरा असर पड़ा है। ऐसे समय में जब कांग्रेस को अपनी छवि सुधारने और जनता के विश्वास को फिर से जीतने की जरूरत है, इस तरह के आरोप उसकी प्रतिष्ठा को और गहरा धक्का पहुंचा सकते हैं। अगर पार्टी अपने भीतर हो रही इन समस्याओं को नहीं सुलझाती, तो यह कांग्रेस के लिए आने वाले चुनावों में और भी बड़ी चुनौतियों का सामना करना मुश्किल बना सकता है। जय तीरथ दहिया ने जो आरोप लगाए हैं, वे केवल एक व्यक्ति के नहीं हैं, बल्कि इससे यह जाहिर होता है कि पार्टी के भीतर गहरे असंतोष की जड़ें फैल रही हैं।

कांग्रेस को यह भी समझना होगा कि जनता अब पहले से ज्यादा सजग हो गई है और उसे अपने नेताओं के चरित्र और नैतिकता पर भरोसा चाहिए। अगर पार्टी अपने कार्यों में पारदर्शिता नहीं दिखाएगी, तो जनता का उससे और दूर जाना स्वाभाविक है। अगर कांग्रेस ऐसे आरोपों को नजरअंदाज करती रही और आंतरिक गुटबाजी को रोकने में विफल रही, तो पार्टी का भविष्य और भी अनिश्चित हो सकता है।

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