नई दिल्ली: हाल के दिनों में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, और अन्य राज्यों में अवैध मस्जिदों के खिलाफ हिंदू संगठनों के प्रदर्शनों में तेजी आई है। इस संदर्भ में कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने चिंता जताते हुए चेतावनी दी है कि अगर यह स्थिति जारी रही, तो देश गृहयुद्ध की चपेट में आ सकता है। दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत में अल्वी ने कहा कि उन्हें बीजेपी शासित राज्यों में मस्जिदों के प्रति बढ़ती नफरत देखकर दुख हो रहा है और इसे रोकने की जरूरत है। राशिद अल्वी ने कहा, "जहाँ एक ओर मुस्लिम देशों में मंदिर बनाए जा रहे हैं, वहीं भारत में मस्जिदों को निशाना बनाया जा रहा है। यह स्थिति ज्यादा समय तक ऐसे नहीं चल सकती और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, देश गृह युद्ध की तरफ जा सकता है। आज आपके पास सत्ता है, लेकिन यह हमेशा नहीं रहती। मस्जिदों और मंदिरों दोनों की सुरक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है।” हालाँकि, अल्वी के इस बयान पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। क्या कांग्रेस नेता इस तरह के बयान देकर अवैध निर्माणों का समर्थन और अतिक्रमणकारियों का हौसला नहीं बढ़ा रहे हैं? क्या सरकारी जमीनों पर बने अवैध निर्माण के खिलाफ आवाज उठाना गलत है? दरअसल, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में हाल ही में अवैध मस्जिद निर्माण के मामले सामने आए, जहाँ हिंदू संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया और सरकार से कार्रवाई की माँग की। उदाहरण के लिए, शिमला में एक मस्जिद को मुस्लिमों ने खुद अवैध मानते हुए ढहा दिया, और उत्तरकाशी में भी अवैध मस्जिद के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन हुआ। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस के नेता केवल मुसलमानों के वोट बैंक को साधने के लिए इस तरह के बयान दे रहे हैं? क्योंकि कांग्रेस के पिछले रिकॉर्ड से यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि उसने वक्फ बोर्ड को असीमित अधिकार दे दिए, जिससे किसी भी जमीन पर कब्जा करना आसान हो गया। इससे एक समुदाय विशेष का राजनीतिक समर्थन सुनिश्चित किया गया, जबकि हिंदू समुदाय को काशी और मथुरा जैसे प्राचीन मंदिरों के लिए सैकड़ों साल अदालतों के चक्कर काटने पड़े। राशिद अल्वी का यह बयान कांग्रेस की उसी नीति की तरह लगता है, जो हिंदू-मुस्लिम मामलों को संवेदनशील बनाने पर आधारित रही है। अल्वी के बयान से यह संकेत मिलता है कि कांग्रेस नेतृत्व का उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के पक्ष में खड़ा रहना है, चाहे उन्होंने कुछ भी किया हो। यदि कांग्रेस सत्ता में होती, तो क्या ऐसी स्थिति में उनके समर्थक गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा नहीं कर सकते थे? इस पर विचार करते हुए यह सवाल भी उठता है कि अवैध निर्माणों और अतिक्रमण के खिलाफ आवाज उठाने को धर्म या समाज विशेष पर हमला क्यों माना जाए? क्या यह न्यायसंगत नहीं कि सभी धर्मस्थलों का सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित की जाए, लेकिन किसी अवैध निर्माण को बर्दाश्त न किया जाए? 'मंदिर जाकर माफ़ी मांग लो, टपकवा ना दे..', सलमान को राकेश टिकैत ने दी सलाह महाराष्ट्र में नहीं हो रहा आचार संहिता का पालन, जब्त हुई 100 करोड़ से ज्यादा-रकम इतिहास रच दो टीम इंडिया..! पुणे टेस्ट में भारत को 359 रनों का टारगेट