नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी अब धीरे-धीरे अपनी जमीन खोती जा रही है। इसके पीछे कारण यह भी है कि अब कांग्रेस ने अपने प्रचार में भी मेहनत करनी बंद कर दी है और जो प्रचार व वादे किए जा रहे हैं वो कहीं न कहीं से कॉपी पेस्ट हैं। अब पार्टी का ताजा वादा ही देखिए। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने के लिए तीन सिलेंडर फ्री देने का वादा किया और इस वादे के साथ पार्टी ने जिस परिवार की तस्वीर का इस्तेमाल किया, उसका इस्तेमाल प्रधानमंत्री उज्जवला योजना में पहले ही हो रखा है। दरअसल, जब प्रधानमंत्री उज्जवला योजना ने 7 करोड़ सिलेंडर बाँटे जाने का बड़ा मुकाम हासिल किया था, तब ये तस्वीर पोस्टर में छपी थी। ये अकेला उदाहरण नहीं है जब कांग्रेस ने प्रचार के नाम पर पार्टी की ही किरकिरी करवाई हो। सिलेंडर के अलावा बस की तस्वीरों पर भी ये घपला देखने को मिला है। हाल में कांग्रेस ने लड़कियों को समर्पित बस की एक फोटो दिखाने के लिए एक तस्वीर शेयर की थी। मगर हकीकत में ये तस्वीर भाजपा शासित प्रदेश असम में आरंभ हुई पिंक बस सर्विस के लॉन्चिंग के समय की है, जिसे कांग्रेस ने पहले थोड़ी एडिटिंग के साथ अपने हैंडल से पोस्ट कर दिया, लेकिन बाद में जब पता चला कि सोशल मीडिया यूजर्स ने उसकी पोल खोल दी है, तो फजीहत से बचने के लिए कांग्रेस ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया। इस ट्वीट में कांग्रेस ने लिखा था की, 'महिलाओं के लिए फ्री बस सेवा लाएँगे, महिलाओं को मुफ्त, सुलभ और सुरक्षित बस सेवा मुहैया करवाएंगे, ये वादे नहीं प्रतिज्ञाएं हैं।' इस ट्वीट के साथ पार्टी ने ‘#आएगी_कांग्रेस’ का भी इस्तेमाल किया था। हालाँकि, ट्विटर यूजर पहले ही इस ट्वीट का स्क्रीनशॉट लेकर बता चुके थे कि जो फोटो कांग्रेस ने शेयर की है, वो गत वर्ष असम में सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा आरंभ की गई पिंक बस सर्विस की है। यानी जो काम भाजपा शासित प्रदेशों में पहले से हो चुका है, कांग्रेस पार्टी इन चुनावों में उनकी तस्वीरें इस्तेमाल करके वादे कर रही है। असम में ये योजना ‘भ्रमण सारथी’ के नाम से पहले से चल रही है और जिस चीज को कांग्रेस ने अपने प्रचार में छिपाया है, वो असम स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन का लोगो है। केपीसीसी ने पिनरी विजयन पर सिल्वरलाइन प्रोजेक्ट पर कमीशन कमाने का आरोप लगाया महिलाओं को चुनाव में 40% टिकट से लेकर सरकारी नौकरी तक, यूपी चुनाव में कांग्रेस ने किए ये वादे आचार संहिता लागू होते ही क्यों 'निहत्थी' हो जाती है राज्य सरकारें ?