नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) बिल पर जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) की हाल ही में हुई बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पर वक्फ संपत्ति कब्जाने के आरोप लगाए गए, जिसके बाद विपक्षी सांसदों ने बैठक का बहिष्कार किया। विपक्षी दलों के सांसदों ने स्पीकर को पत्र लिखकर कमेटी के चेयरपर्सन जगदंबिका पाल को हटाने की मांग की और उनसे मुलाकात के लिए समय भी मांगा। विपक्षी सांसदों का कहना है कि कमेटी की कार्यवाही तय नियमों के अनुसार नहीं हो रही है। उनका आरोप है कि बैठक के दौरान कर्नाटक माइनॉरिटी कमीशन के पूर्व अध्यक्ष अनवर मणिप्पाडी द्वारा दी गई प्रेजेंटेशन वक्फ बिल से संबंधित नहीं थी, बल्कि कर्नाटक सरकार और कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की छवि को खराब करने का प्रयास था। अनवर मणिप्पाडी ने अपनी प्रेजेंटेशन में कांग्रेस प्रमुख खड़गे पर वक्फ संपत्ति हड़पने का आरोप लगाया, जिसका विपक्षी सांसदों ने विरोध किया। हालाँकि, विपक्षी सांसद खड़गे द्वारा जमीन ना हड़पे जाने का कोई प्रमाण नहीं दे सके और वाकआउट कर गए। दरअसल, 2012 में मणिप्पाडी कमेटी ने वक्फ संपत्ति में कथित 2.3 लाख करोड़ रुपये के घोटाले की रिपोर्ट तत्कालीन मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा को सौंपी थी। उस समय मणिप्पाडी कर्नाटक माइनॉरिटी कमीशन के चेयरपर्सन थे। इस रिपोर्ट में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं के नाम थे। आठ साल बाद, 2020 में, यह रिपोर्ट विधानसभा में पेश की गई, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। इस बीच, केरल विधानसभा ने भी वक्फ (संशोधन) बिल के खिलाफ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करते हुए केंद्र सरकार से इसे वापस लेने का आग्रह किया है। यह बिल 8 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था और विपक्ष की आपत्ति के बाद इसे JPC को भेजा गया था। कमेटी को संसद के अगले सत्र के पहले सप्ताह के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। इस मामले में देखा गया है कि JPC की बैठकों में विपक्षी सांसद वॉकआउट कर रहे हैं और सक्रिय रूप से चर्चा में भाग नहीं ले रहे हैं। जबकि यह बिल विपक्ष की मांग पर ही JPC को भेजा गया था, लेकिन अब इस पर कोई सार्थक चर्चा नहीं हो रही है। विपक्ष केवल इस बिल को वापस लेने की मांग कर रहा है, जबकि सरकार अपने संशोधनों पर कायम है। संसद का शीतकालीन सत्र जल्द ही शुरू होने वाला है, जिसमें यह बिल पेश किया जाएगा। अगर सरकार इसे पारित कर देती है, तो विपक्ष का वही आरोप होगा कि उनसे चर्चा नहीं की गई और सरकार ने मनमाने तरीके से बिल पास कर दिया। जबकि पिछले दो महीनों से JPC में वक्फ बिल पर बैठकों का दौर जारी है। इस स्थिति में यह सवाल उठता है कि विपक्ष क्यों मीटिंग से बाहर जा रहा है, जबकि बिल पर बातचीत का रास्ता खुला हुआ है। ऐसे मामलों में यदि चर्चा नहीं होती, तो आगे आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहेगा, और सार्थक समाधान की संभावना कम हो जाएगी। वक्फ बिल पर भारत सरकार के 4 मुख्य संशोधन :- इसमें चार मुख्य संशोधन हैं, पहले हम कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए कानून की बात करें तो, इसमें सेक्शन 40 के तहत पहला प्रावधान ये था कि, अगर वक्फ अपने विश्वास के आधार पर किसी भी संपत्ति पर अपना दावा ठोंकता है, तो वो संपत्ति वक्फ की हो जाएगी, उसे कोई सबूत पेश करने की जरूरत नहीं होगी और इस मामले में जिसे आपत्ति हो, वो वक्फ के ट्रिब्यूनल में जाकर ही गुहार लगाए। भाजपा सरकार का संशोधन है कि, पीड़ित, रेवेन्यू कोर्ट, सिविल कोर्ट, हाई कोर्ट आदि जा सकेगा। कांग्रेस सरकार के कानून में दूसरा प्रावधान ये था कि, वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला अंतिम होगा, यानी वो जो कहे, वही सत्य। भाजपा सरकार का संशोधन है कि, वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकेगी, इससे वक्फ की मनमानी ख़त्म होगी। कांग्रेस सरकार के कानून के मुताबिक, तीसरा प्रावधान ये था कि, कहीं कोई मस्जिद है, मजार है, मदरसा है, या जमीन को इस्लामी उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा रहा है, तो जमीन अपने आप वक्फ की हो जाएगी, भले ही उसे किसी ने दान किया हो या नहीं। AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी एक बयान में कह ही चुके हैं कि, ''एक बार जब मुस्लिम किसी जगह को इबादतगाह के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर देता है तो वह जगह हमेशा के लिए मुस्लिमों की संपत्ति बन जाती है और अब मोदी सरकार उस प्रावधान को बदल रही है।'' ऐसे में अगर समुदाय, किसी पार्क, मैदान, रेलवे स्टेशन को इबादतगाह मानकर वहां नमाज़ पढ़ने लगेगा, तो क्या वो जमीन वक्फ की हो जाएगी ? इस मामले में भाजपा सरकार का संशोधन ये है कि, जब तक कोई जमीन वक्फ को दान ना की गई हो, तब तक वो संपत्ति वक्फ की नहीं हो सकती, भले ही वहां मस्जिद या मज़ार मौजूद हो। कांग्रेस सरकार के कानून के चौथे प्रावधान के मुताबिक, वक्फ बोर्ड में महिला और अन्य धर्म के लोगों को सदस्य नहीं बनाया जाएगा। भाजपा सरकार का कहना है कि, बोर्ड में 2 महिला और अन्य धर्म के 2 लोगों को सदस्य बनाया जाएगा। वैसे, तो कांग्रेस सरकार के बनाए हुए वक्फ कानून में कुल 40 संशोधन किए जाने हैं, लेकिन उनमे ये चार मुख्य हैं, जिनका पूरे विपक्षी दल पुरजोर विरोध कर रहे हैं। आज वक्फ के पास देश की 9 लाख एकड़ से अधिक जमीन है, जो भारतीय सेना और भारतीय रेलवे के बाद तीसरे नंबर पर है। ये संपत्ति हर साल बढ़ते जा रही है, हर साल वक्फ सर्वे करता है और कई जमीनों पर अपना दावा ठोक देता है, पूरे के पूरे गाँव को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जाता है। इसके अधिकतर शिकार, दलित-पिछड़े, आदिवासी ही होते हैं। लेकिन, दलितों-आदिवासियों और पिछड़ों के अधिकार का दावा करने वाले तमाम राजनेता इस मामले पर मौन हैं। वैसे एक सवाल ये भी है कि, जब आज़ादी के बाद सरदार पटेल के प्रयत्न से राजा-रजवाड़ों से उनके पुश्तैनी जमीनें लेकर सरकार के नाम कर ली गईं, तो फिर वक्फ के नाम से एक अलग 'राजवंश' बनाने का क्या औचित्य था ? देश की जमीन सरकार के अधीन ही रहना चाहिए थी। घरवालों को आलू के पराठों में नींद की गोलियां मिलाकर खिलाया, फिर जो किया... बहन पर बुरी नजर रखता था शख्स, भाई ने फ़िल्मी-अंदाज में उतारा मौत के घाट गिरफ्तार हुआ पुलिसकर्मी को थप्पड़ मारने वाला BJP नेता, सड़क पर निकाला जुलूस