आदिवासी संस्कृति की एक अनोखी परंपरा है गाय गोहरी

दिलीप सिंह वर्मा की रिपोर्ट

झाबुआ। दिपावली के दूसरे दिन अर्थात नव वर्ष, पडवा के दिन पूरे देश भर में गोर्वधन पूजा की जाती है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा गोकूल वासियों को इन्द्र के प्रकोप से सात दिनों तक अपनी अंगूली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर भारी वर्षा के प्रकोप से बचाया था। ब्रज मंडल में गोवर्धन पूजा का खासा महत्व है। देश भर के श्रीकृष्ण मंदिरों और गोवर्धन नाथ मंदिरों में भी गोर्वधन पूजा की जाती है तथा जिन किसानों और गोपालकों के यहां गायें पाली जाती है उनके द्वारा भी गोर्वधन पूजा की जाती है। इसके तहत गाय के गोबर से मंदिर या घर के बहार आंगन में गोर्वधन पर्वत बनाया जाता है और फिर उसकी पूजा की जाती है।

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ, आलिराजपुर, धार, उज्जैन सहित मालवा निमाड के अंचलों में गाय गोहरी पर्व बनाये का रिवाज सदियों से चला आ रहा है। इसके तहत आदिवासी अपने पशुधन को दिपावली के अवसर पर रंग बिरंगे कलरों, परिधानों से, मोर पंखों से सजाता है और उनके गले में घंटियां बांधी जाती है फिर उनकी पूजा करते है। आदिवासीयों में मान्यता के गोहरी पडने वाली आदिवासी मन्नतधारी धारी के घर में बिमारीयों का वास नही होता और हमेशा सुख संपत्ती बनी रहती है। गाय गोहरी पर्व में गाय तो होती है और गायों के नीचे लेटने वाले को गोहरी कहा जाता है। 

झाबुआ मुख्यालय के गोवर्धन नाथ मंदिर के प्रांगण में इस साल 1 नवबंर को सांय 4 बजे गाय गोहरी का पर्व मनया जायेगा। इस दिन दोपहर बाद से ही बाजार सुने हो जात है गोहरी मार्ग पर सन्नाटा छा जाता है। सांय होते ही सड़क के दोनों किनारों पर सैकडों लोगों की भीड़ गाय गोहरी देखने के लिये जुट जाती है। ग्वाले बनठन कर साथ में रंग बिरंगी गायों को लाते है, मंदिर प्रागंण से गाय गोहरी प्रारंभ होती है। मंदिर के पुजारी सहित समाज जन और महिलाऐं बड़ी संख्या में भजन किर्तन करते हुए मंदिर की पांच परिक्रमा करते है। इस दौरान गोहरी पडने वाले मन्नतधारी व्यक्ति जमीन पर औधें मुंह लेट जाते है और उनके उपर से गाये दौड़ा कर निकाली जाती है। मान्यता है कि गौ माता के खुर पडने से मन्नत धारी की मन्नत पूरी होती है बाद में उक्त गोहरी पडने वाले को साफा बंधा कर उसका सम्मान भी किया जाता है। आदिवासी अंचल के अनेक ग्रामीण क्षेत्रों में उक्त पर्व बड़े ही उत्साह एवं उमंग के साथ मनाया जाता है। जिसे देखने के लिये आस पास के ग्रामीण जन एकत्र होते है।

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