क्रिकेट का बल्ला और उसकी कहानी

क्रिकेट में रनों की बरसात के पीछे बल्ले का अहम योगदान होता है. तो जानिए बल्ले के बारे वो सब रोचक बातें जो आप नहीं जानते होंगे. क्रिकेट का बल्ला विलो की लकड़ी से बनाया जाता है. इस पेड़ का वैज्ञानिक नाम है सैलिक्स ऐल्बा. विलो के पेड़ इंग्लैंड के ऐसेक्स इलाके में होते हैं, भारत में ये सबसे ज्यादा कश्मीर में होता है. भारत के ज्यादातर हिस्सों में कश्मीर से ही बैट बनकर आते हैं. बल्ला बनाने के लिए जब लकड़ी को काटा जाता है तो इसका वज़न कोई दस किलो होता है. लेकिन इसकी सीज़निंग करने के बाद यह मात्र एक किलो 200 ग्राम रह जाता है.

उसके बाद बल्ले को एक ख़ास मशीन से दबाया जाता है जिससे उसका खेलने वाला हिस्सा मज़बूत बन सके, बॉल पड़ने से उसमें गढ्ढे न पड़ें और गेंद बाउन्स कर सके. बल्ले पर अलसी का तेल लगाने से यह और मज़बूत हो जाता है. क्रिकेट के नियम पांच के मुताबिक क्रिकेट बैट की लंबाई 38 इंच यानि कि 97 सेमी. से ज्यादा नहीं हो सकती. साथ ही चौड़ाई 4.25 इंच(1.8 सेमी.) होनी चाहिए.

कुछ सालों पहले बैट के नियम में बदलाव किया गया था जब ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेटर इयान हिली ने एल्यूमिनियम धातु के बैट का इस्तेमाल किया था. जब विपक्षी टीम के कप्तान ने अंपायर से कहा कि भारी धातु से बना यह बैट क्रिकेट गेंद को खराब कर रहा है तब अंपायरों ने हिली को उस बल्ले को इस्तेमाल ना करने को कहा. तबसे ही क्रिकेट में नया नियम इजाद हुआ कि क्रिकेट बैट की ब्लेड अनिवार्य रूप से लकड़ी की होनी चाहिए. 

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