नई दिल्ली: भारत के डी गुकेश ने शतरंज की दुनिया में इतिहास रचते हुए महज 18 साल की उम्र में वर्ल्ड चैंपियन का खिताब जीत लिया। उन्होंने चीनी चैंपियन डिंग लिरेन को 7.5-6.5 के स्कोर से हराकर यह उपलब्धि हासिल की। यह मुकाबला 14 राउंड तक चला, जिसमें आखिरी बाजी ने गुकेश को चैंपियन बना दिया। इस जीत के साथ, वह सबसे कम उम्र के विश्व चैंपियन बने और विश्वनाथन आनंद के बाद यह खिताब जीतने वाले दूसरे भारतीय खिलाड़ी भी बन गए। गुकेश और लिरेन के बीच यह मुकाबला 17 दिनों तक चला। 13 राउंड तक दोनों बराबरी पर थे, लेकिन 14वें और आखिरी राउंड में गुकेश ने निर्णायक बढ़त बनाई। आखिरी बाजी लगभग 5 घंटे चली, जिसमें 58 चालें चलीं। एक समय ऐसा था जब यह बाजी ड्रा की ओर बढ़ रही थी, लेकिन लिरेन की एक गलती ने उन्हें हार की ओर धकेल दिया। लिरेन ने अपने घोड़ों की अदला-बदली में चूक की, जिसे गुकेश ने तुरंत भांप लिया। उनकी तीसरी ही चाल ने लिरेन को हार मानने पर मजबूर कर दिया। इस जीत को क्लासिकल शतरंज की बेहतरीन मिसाल माना जा रहा है। गुकेश की इस ऐतिहासिक जीत पर शतरंज के दिग्गजों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएँ दीं। पूर्व चैंपियन व्लादिमीर क्रेमनिक ने लिरेन की गलती को "बचकानी" करार दिया और कहा कि यह "शतरंज का अंत" जैसा था। हालांकि, उनके इस बयान पर विवाद भी खड़ा हुआ। लोगों ने यह याद दिलाया कि 1892 के एक फाइनल मैच में मिखाइल चिगोरिन ने ऐसी ही गलती की थी और दो चालों में हार गए थे। दूसरी ओर, 15 साल तक वर्ल्ड चैंपियन रहे गैरी कास्परोव ने गुकेश की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी उम्र से परे प्रदर्शन दिखाया। उन्होंने गुकेश की तैयारी और उनके दृढ़ संकल्प की सराहना की। डी गुकेश ने 11 साल की उम्र में सबसे युवा वर्ल्ड चैंपियन बनने का सपना देखा था। उन्होंने 11 साल 6 महीने की उम्र में एक इंटरव्यू में कहा था कि वह एक दिन यह खिताब हासिल करेंगे। सात साल की मेहनत और लगन ने उनके सपने को हकीकत में बदल दिया। FIDE (फिडे) शतरंज चैंपियनशिप का आयोजन करता है। कभी इस चैंपियनशिप को लेकर विवाद हुआ करता था, जब दो खिलाड़ी खुद को विश्व चैंपियन बताते थे। 2006 में यह विवाद सुलझा, और चैंपियनशिप को एकीकृत किया गया। उस दौर में क्रेमनिक खुद को क्लासिकल चैंपियन कहते थे। बाद में 2007 में उन्हें भारत के विश्वनाथन आनंद ने हराया। अब डी गुकेश की जीत पर सवाल उठाकर क्रेमनिक पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह अपनी पुरानी हार का गुस्सा नए भारतीय चैंपियन पर निकाल रहे हैं। डी गुकेश की यह जीत केवल भारत के लिए गर्व का विषय नहीं है, बल्कि शतरंज के इतिहास में एक नया युग भी है। उनकी लगन और प्रदर्शन ने साबित कर दिया है कि उम्र महज एक संख्या है। उनकी कहानी उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो बड़े सपने देखने और उन्हें हासिल करने का जज्बा रखते हैं। कांबली की मदद के लिए आगे आई 1983 की वर्ल्ड चैंपियन टीम, लेकिन एक शर्त.. एडिलेड में ताश के पत्तों की तरह बिखरी टीम इंडिया, ऑस्ट्रेलिया ने बराबर किया हिसाब एडिलेड टेस्ट में मुश्किल में आई टीम इंडिया, दूसरी पारी में 5 विकेट गिरे