आप सभी को बता दें कि भारतीय सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार, महान दानी महर्षि दधीचि की जयंती इस बार 6 सितंबर 2019 यानी आज मनाई जा रही है. यानी आज दधीच जंयती हैं जो भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है. ऐसे में महर्षि दधीचि जयंती पूरे देश मे श्राद्धा एवं उल्लास के साथ मनाते हैं और पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि महर्षि दधीचि जैसा दानी आज पैदा नहीं हुआ. आज हम आपको उन्ही के दान की एक कथा बताने जा रहे हैं. आइए जानते हैं. महर्षि दधीचि के दान की कथा- एक बार इंद्र के अभिमान से व्यथित होकर भगवान व्रहस्पति देव ने देवलोक छोड़कर चले गए थे. इसका लाभ उठाकर दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने इंद्रलोक पर हमलाकर देवलोक पर अधिकार जमा लिया. इसके साथ एक ऋषि ने इंद्र के कृत्य से रुष्ठ हो वृत्तासुर नामक राक्षस को प्रकट कि जो पूरे देवलोग को पराजित कर भयभीत कर दिया. पराजय से दुखी को होकर इंद्र भगवान विष्णु के पास गए. भगवान विष्णु ने सलाह दी कि वह वृत्तासुर को हराने के लिए महर्षि दधीच की सहायता लें. उन्होंने बताया कि किसी तपस्वी की अस्थियों से बनाया गया बज्र ही वृत्तासुर का वध किया जा सकता है. और इसके लिए महर्षि दधीच अपनी अस्थियां दान कर सकते हैं. इसके बाद सभी देवता दधीच के पास पहंचे और अपना दुख बताकर उनसे अस्थियों की मांग की. महर्षि दधीचि को भगवान शिव से अस्थि वज्र का वरदान प्राप्त था. परोपकार की भावना वे दधीच ने अपनी अस्थियों को दान करना स्वीकार किया और अंत में दैत्य वृत्तासुर का वध हुआ. इस राक्षस को खत्म करने के लिए श्री हरी ने अपने मुख पर धारण की थी पृथ्वी सालभर में बहुत मुख्य होती हैं यह दो रातें, सो गए तो हो जाएंगे गरीब चाणक्य नीति: भूलकर भी ना निकले इन 5 के बीच से