शिक्षक समाज के ऐसे शिल्पकार होते हैं जो बिना किसी मोह के इस समाज को तराशते हैं, शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही नहीं बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्रों को परिचित कराना भी होता है. शिक्षकों की इसी महत्ता को सही स्थान दिलाने के लिए ही हमारे देश में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पुरजोर कोशिशें की, जो खुद एक बेहतरीन शिक्षक थे. आज आजाद भारत के पहले उप-राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति दिग्गज शिक्षाविद् सर्वपल्ली राधाकृष्‍णन की पुण्यतिथि है. साल 1975 में आज ही के दिन लंबी बीमारी की वजह से उनका निधन हो गया था. उन्हें दुनिया में सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों में से एक माना जाता था और वो कहते थे कि अच्छा टीचर वो है, जो ताउम्र सीखता रहता है और अपने छात्रों से सीखने में भी कोई परहेज नहीं दिखाता. महान शिक्षाविद राधाकृष्ण ने 12 साल की उम्र में ही बाइबिल और स्वामी विवेकानंद के दर्शन का अध्ययन कर लिया था. उन्होंने दर्शन शास्त्र से एम.ए. किया और 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में सहायक अध्यापक के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई. उन्होंने 40 सालों तक शिक्षक के रूप में काम किया. वे 1931 से 1936 तक आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. हालांकि उन्होंने बतौर कुलपति सैलरी भी नहीं ली थी. इसके बाद 1936 से 1952 तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर रहे और 1939 से 1948 तक वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर आसीन रहे. उन्होंने भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन किया. डॉ. राधाकृष्णन ने 1962 में भारत के सर्वोच्च, राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया. उन्होंने भारत ने पहले उप राष्‍ट्रपति के तौर पर 1952 से 1962 तक अपने दो कार्यकाल पूरे किए. इसके बाद 1962 से 1967 तक उन्‍होंने दूसरे राष्‍ट्रपति के तौर पर देश की बागडोर संभाली. उन्होंने गौतम बुद्धा, जीवन और दर्शन, धर्म और समाज, भारत और विश्व आदि पर किताबें भी लिखीं. 'हिन्द दी चादर' गुरु तेग बहादुर सिंह जी को कोटि कोटि नमन पंजाब की मिट्टी में रचा-बसा त्यौहार, बैसाखी ज्योतिबा फुले जयंती : ब्राह्मणवाद के विरोधी ज्योतिबा फुले के बारे में जानिए खास बातें