नई दिल्ली: कार्यकर्ता मेधा पाटकर की लंबे समय से चली आ रही कानूनी लड़ाई एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंच गई, जब दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा दायर मानहानि के मामले में दोषी ठहराया। कोर्ट 1 जुलाई को उनकी सजा पर फैसला सुनाएगी। 23 साल की कानूनी कार्यवाही के बाद दिए गए फैसले में पाटकर को सक्सेना को कायर करार देकर और हवाला लेन-देन में शामिल होने का आरोप लगाकर उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने का दोषी पाया गया। अदालत ने सक्सेना की ईमानदारी, सार्वजनिक सेवा की छवि और सामाजिक प्रतिष्ठा पर इस तरह की अपमानजनक टिप्पणियों के प्रभाव पर जोर दिया, जिसके परिणामस्वरूप अंततः पाटकर को आईपीसी की धारा 500 के तहत दोषी ठहराया गया। न्यायालय का निर्णय प्रतिष्ठा के महत्व को एक मूल्यवान संपत्ति के रूप में रेखांकित करता है जो व्यक्तिगत, व्यावसायिक और सामाजिक संबंधों को प्रभावित करती है। यह समाज में किसी व्यक्ति की स्थिति पर मानहानिकारक बयानों के स्थायी नतीजों को उजागर करता है और उन आरोपों की गंभीरता को रेखांकित करता है जो ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा को कमजोर करते हैं। पाटकर द्वारा दुर्भावनापूर्ण इरादे का खंडन करने वाले सबूत पेश करने में असमर्थता के बावजूद, न्यायालय ने उनकी टिप्पणियों को इतना हानिकारक माना कि उन्हें दोषी ठहराया जा सकता है। वीके सक्सेना और मेधा पाटकर के बीच 2000 में शुरू हुआ कानूनी विवाद आपसी आरोप-प्रत्यारोप और कानूनी लड़ाइयों से भरा एक लंबा संघर्ष दर्शाता है। पाटकर ने शुरू में सक्सेना के खिलाफ उन पर और नर्मदा बचाओ आंदोलन पर निशाना साधने वाले अपमानजनक विज्ञापनों के लिए मामला दर्ज कराया था। जवाब में, सक्सेना ने एक टेलीविजन चैनल पर की गई अपमानजनक टिप्पणियों के लिए पाटकर के खिलाफ दो जवाबी मामले दर्ज कराए। यह सजा उनके लंबे कानूनी झगड़े में एक महत्वपूर्ण विकास को दर्शाती है, जो विवादास्पद बयानों के स्थायी परिणामों और मानहानि के लिए उपलब्ध कानूनी उपायों पर प्रकाश डालती है। महात्मा गांधी, अंबेडकर और छत्रपति शिवाजी की प्रतिमाएं संसद परिसर में 'सम्मानपूर्वक' लगाई गईं, कांग्रेस के आरोपों पर सचिवालय का जवाब कंगना रनौत को थप्पड़ मारने वाले CISF कांस्टेबल के समर्थन में उतरे किसान यूनियन, करेंगे प्रदर्शन वट सावित्री की पूजा कर रही महिलाओं पर मुस्लिम भीड़ का हमला, कई घायल, पुलिस तैनात