श्रीनगर: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में सिख समुदाय के लिए दो विधान सभा सीटें आरक्षित करने की मांग को लेकर अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने शनिवार (29 जुलाई) को शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। अपनी पार्टी की प्रांतीय अध्यक्ष (महिला विंग) पवनीत कौर ने इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। दरअसल, केंद्र सरकार ने 26 जुलाई को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया था, जिसमें कश्मीरी प्रवासी समुदाय के 2 और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर शरणार्थियों के 1 सदस्य को संघ की विधान सभा में नामांकित करने का प्रस्ताव था। इस पर कौर ने कहा कि, "सिख समुदाय को सरकारों और विधानसभाओं में उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में उपेक्षित रखा गया है, जबकि अन्य समुदायों को प्राथमिकता दी गई है।" उन्होंने कहा कि सिख आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं, जिन्होंने समाज के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर और राष्ट्र में "रक्षा, पुलिस, प्रशासन, सामाजिक कार्यों और शिक्षा प्रणाली में अतुलनीय योगदान दिया है, लेकिन सरकारों द्वारा समुदाय को प्राथमिकता नहीं दी गई"। जिला अध्यक्ष ग्रामीण-बी हरप्रीत सिंह ने सिख समुदाय के प्रति "भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण" पर चिंता व्यक्त की और केंद्र शासित प्रदेश में आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में पंजाबी भाषा के पुनर्गठन की भी मांग की। पंजाबी भाषी लोगों के काम और उनकी विरासत को सरकार द्वारा मान्यता दी जानी चाहिए, उन्होंने कहा, "हम किसी को कुछ भी दिए जाने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन सिखों को राजनीतिक आरक्षण दिया जाना चाहिए। इस प्रकार, उनके लिए दो विधान सभा सीटें आरक्षित की जानी चाहिए।" वहीं, जम्मू-कश्मीर भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष रणजोध सिंह नलवा ने कश्मीरी प्रवासियों में से एक महिला सहित दो सदस्यों और पीओजेके के विस्थापित व्यक्तियों में से एक को नामित करने के विधेयक का स्वागत करते हुए विधानसभा में सिखों को भी नामित करने की मांग की। उन्होंने कहा, ''सिख समुदाय ने समय-समय पर विभिन्न मंचों से विधान सभा में समुदाय के एक सदस्य को नामांकित करने की मांग उठाई है।'' सिंगापुर के 7 सैटेलाइट लेकर रवाना हुआ PSLV-C56 रॉकेट, ISRO ने की सफल लॉन्चिंग पुलवामा हमले के 'आतंकी' जैसी कांग्रेसी मंत्री प्रियंक खड़गे की भाषा! कर्नाटक सरकार में 'हिन्दू घृणा' का एक और नमूना अहमदाबाद के अस्पताल में लगी भीषण आग, 100 मरीजों को निकाला गया