नोटबन्दी का फैसला सरकार ने लिया था

नई दिल्ली : अभी तक यह माना जा रहा था कि नोटबंदी का फैसला रिजर्व बैंक द्वारा लिया गया था, लेकिन पिछले महीने आरबीआई ने संसदीय पैनल को दी गई अपनी एक रिपोर्ट में ये स्पष्ट किया कि 500 और 1000 रुपये के नोटों को वापस लेने का फैसला सरकार का था.

उल्लेखनीय है कि वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली वित्त विभाग से जुड़ी संसदीय समिति में 22 दिसंबर को आरबीआई ने नोटबंदी को लेकर सात पन्नों का नोट जमा कराया था. इसमें बताया गया है कि, सरकार ने सात नवंबर 2016 को रिजर्व बैंक को सलाह दी कि आतंकवाद की फंडिंग, काले धन और जाली नोटों की समस्या को कम करने के लिए 500 और 1000 रुपये के बड़े नोटों की कानूनी मान्यता वापस ली जा सकती है. इससे भारत के विकास पर सकारात्मक असर पड़ेगा. 

सरकार का मत था कि पिछले पांच सालों में 500 और 1000 रुपये के नोटों का चलन बढ़ा है. इससे जाली नोटों की घटनाओं में भी बढ़ोत्तरी हुई है. आतंकवाद और मादक पदार्थों के जरिए बहुत सारे नकली नोट का उपयोग हो रहा है. इसलिए सरकार ने इन नोटों को बंद करने की सिफारिश के साथ इस पर फ़ौरन काम करने को कहा था. इसके बाद अगले दिन आरबीआई सेंट्रल बोर्ड की मीटिंग हुई. जिसमें काफी विचार विमर्श के बाद फैसला लिया गया कि 500 और 1000 रुपये के नोटों को वापस लिया जाए.

सरकार ने इन सुझावों को माना और नोट वापस लेने का फैसला लिया. उसी दिन शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन दिया और नोटबंदी का ऐलान कर दिया. जबकि दूसरी ओर आठ दिन बाद राज्यसभा में नोटबंदी बहस के दौरान केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि नोटबंदी का फैसला आरबीआई के बोर्ड ने लिया है। आरबीआई ने बताया कि जब नए छपे नोटों का स्टॉक जरुरी सीमा तक पहुंच जाता है तो नोटों को वापस लेने का फैसला किया जाता है.

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